अर्जुन के प्रसिद्ध धनुष गांडीव के विषय में तो आप जानते ही होंगे। गांडीव अर्जुन को बहुत प्रिय था। यह धनुष जिसके पास भी रहता उसे कोई भी नहीं हरा सकता था। इस धनुष को कोई भी शस्त्र या अस्त्र नष्ट नहीं कर सकता था। गांडीव के साथ अक्षय तरकश उसे और भी शक्तिशाली बनाता था। अक्षय तरकश से कभी भी बाण ख़त्म नहीं होते थे। पहले यह धनुष वरुणदेव के पास था लेकिन यह अर्जुन के पास क्यों और कैसे आया।
ऋषि दुर्वाषा और अग्निदेव
एक समय की बात है श्वेतकी नाम के एक राजा ने ऋषि दुर्वासा से एक बड़े यज्ञ के आयोजन करवाया। यह यज्ञ अनेक वर्षों तक चला जिस कारण अग्नि देव को घी की बहुत अधिक मात्रा में आहुति दी गयी। इतना अधिक घी को पचाने के कारण अग्नि देव की पाचन शक्ति क्षीण हो गयी। अग्नि का रंग भी फीका हो गया था। अपनी इस समस्या को लेकर अग्निदेव ब्रह्मा के पास पहुंचे। तब ब्रह्मा ने कहा की पृथ्वी पर स्थित खांडव वन को जलाने का उपाय सुझाया। तब अग्निदेव ने पृथ्वी पर आकर वन को जलाने का प्रयास किया परन्तु वे असफल रहे। जैसे ही अग्निदेव ने वन को जलाया, इंद्रदेव ने वर्षा करके अग्नि को बुझा दिया। क्यूंकि खांडव वन में इंद्रदेव के मित्र नागराज तक्षक का वास करते थे।
अग्निदेव के पुनः प्रयास करने पर इंद्र ने फिर से अग्नि को बुझा दिया। इस प्रकार अग्निदेव के अनेकों प्रयास किये पर इंद्रदेव उन्हें सफल नहीं होने देते। अंत में अग्निदेव फिर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और अपनी विपदा बताई। तब ब्रह्मा जी ने अग्निदेव को भगवान कृष्ण और अर्जुन से सहायता लेने के लिए कहा।
किसने दिया अर्जुन को गांडीव
अग्निदेव अर्जुन और कृष्ण के पास एक ब्राह्मण के रूप में पहुंचे और अपनी सहायता के वचन ले लिया। उस समय भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन यमुना नदी में विहार कर रहे थे। वचन लेने के बाद अग्नि देव ने अपना असली रूप दिखाया और खांडव वन को जलाने के लिए सहायता मांगी। तब अर्जुन ने कहा कि अभी हमारे पास कोई अस्त्र शस्त्र नहीं है इसलिए हम इंद्रदेव को रोकने में सक्षम नहीं होंगे।
तब अग्निदेव ने वरुणदेव को याद किया। वरुणदेव प्रकट हुए. वरुणदेव को राजा सोम से गांडीव धनुष और अक्षय तर्कश प्राप्त हुआ था। अग्निदेव ने ये दोनों ही शस्त्र अर्जुन को देने के लिए कहा। वरुणदेव ने ऐसा ही किया। इसके साथ अर्जुन को एक दिव्यरथ भी प्राप्त हुआ। जिसमे मन की गति से चलने वाले घोड़े थे। अर्जुन के अतिरिक्त श्री कृष्ण को एक चक्र और गदा प्राप्त हुई। तब एक युद्ध के परिणामस्वरूप इंद्रदेव को रोका गया और अग्निदेव ने खांडव वन को जला दिया। तो दोस्तों इस प्रकार अर्जुन को ऐसा महाशक्तिशाली धनुष प्राप्त हुआ था।