भगवान विष्णु के चारों हाथों की उत्पति की कथा
देवी जग्गदम्बिका का दक्ष के घर मे जनम:
शिवपुराण- देवी जग्गदम्बिका दक्ष के घर किस तरह वितरित हुई, देवी जग्गदम्बिका का दक्ष के घर मे जनम ? मित्रों शिवपुराण के पिछले एपिसोड में आपने देखा की किस तरह नारद जी के कहने पर प्रजापति दक्ष के सभी पुत्रों ने संन्यास धारण कर लिया जिससे क्रोधित होकर प्रजापति दक्ष ने देवर्षि नारद को तीनो लोकों में ब्रामण करने का श्राप दे दिया। हम आपको बताने जा रहे हैं की किस तरह देवी जग्गदम्बिका दक्ष के घर वितरित हुई। तो चलिए अब बिना किसी देरी के शिवपुराण की ये दिव्य कथा शुरू करते हैं।
भगवान शिव के त्रिशूल,डमरू,नाग का रहस्य
देवी जग्गदम्बिका का दक्ष के घर मे जनम | कथा के अनुसार नारद जी भाई से श्राप मिलने के बाद वहां से चले गए जिसके बाद दक्ष दुखी रहने लगे। फिर एक दिन परमपिता ब्रह्माजी उनके पास आये और उन्हें सांत्वना देते हुए कहा ये सब विधि का विधान है इसे मैं भी नहीं बदल सकता। वत्स तुम निराश मत हो और मेरी मानो तो अपनी पत्नी के गर्भ से कन्यायें उत्पन्न करने का कोई उपाय करो। प्रजापति दक्ष से इतनी बातें कहकर ब्रह्माजी अपने धाम को लौट आये।
फिर कुछ समय प्रजापति दक्ष ने अपने पिता के आदेशानुसार अपनी पत्नी के गर्भ से साठ सुंदरी कन्याओं को जन्म दिया और फिर जब वे बड़ी हो गयी तो दक्ष ने उन सबका विवाह कर दिया। दक्ष ने पहले अपनी दस कन्याओं का विवाह धर्म के साथ करवा दिया,उसके बाद तेरह कन्याओं का विवाह कश्यप मुनि के साथ किया और सताईस कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ कर दिया। उसके बाद दक्ष ने बहुपुत्र,अङ्गिरा तथा कृशाश्व को दो-दो कन्यायें दी और शेष चार कन्याओं का विवाह ताक्षर्य या अरिष्टनेमि के साथ कर दिया।
नंदी कैसे बने भगवान शिव के वाहन
पुत्रियों के विवाह के पश्चात् प्रजापति दक्ष ने पत्नी सहित बड़े प्रेम से मन-ही-मन जगदम्बिका का ध्यान करने लगे। साथ ही उनकी स्तुति करते समय वे देवी के सामने मस्तक झुकाते । इससे देवी शिवा प्रसन्न हुई और उन्होंने अपने प्रण की पूर्ती के लिये मन-ही-मन यह विचार किया कि अब मैं वीरिणी के गर्भ से अवतार लूँ। ऐसा विचार कर वे जगदम्बा दक्ष के ह्रदय में निवास करने लगी। जिससे दक्ष की शोभा बढ़ने लगी। फिर उत्तम मुहूर्त देखकर दक्ष ने अपनी पत्नी में प्रसन्नतापूर्वक गर्भाधान किया। तब दयालु शिवा दक्ष-पत्नी के चित्त में निवास करने लगी। उस अवस्था में वीरिणी की शोभा बढ़ गयी और उसके चित्त में अधिक हर्ष छा गया। भगवती शिवा के निवास के प्रभाव से वीरिणी महामंगलरूपिणी हो गयी। जिसके बाद दक्ष ने अपने कुल सम्प्रदाय,वेदज्ञान और हार्दिक उत्साह के अनुसार प्रसन्नता पूर्वक पुंसवन सहित सभी संस्कार की क्रियाएं संपन्न की। इन संस्कारों के दौरान प्रजापति ने ब्राह्मणो को उनकी इच्छा के अनुसार धन दिया।
पुराणों के अनुसार कौन था पहला कांवड़िया ?
उधर देवलोक में देवताओं को जब यह समाचार मिला कि देवी शिवा वीरिणी के गर्भ में निवास करने लगी तो श्रीविष्णु सहित सभी देवताओं को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन सब ने वहां आकर जगदम्बा का स्तवन किया और समस्त लोकों का उपकार करने वाली देवी शिवा को बारम्बार प्रणाम किया। और अंत में सब देवता दक्ष प्रजापति तथा वीरिणी को आशीर्वाद देकर अपने-अपने धाम को लौट गये। फिर दसवें महीने के पूर्ण होने पर चन्द्रमा आदि ग्रहों तथा ताराओं की अनुकूलता से युक्त सुखद मुहूर्त में देवी शिवा शीघ्र ही अपनी माता के सामने प्रकट हुई। उनके अवतार लेते ही प्रजापति दक्ष बड़े प्रसन्न हुए और उन्हें महान तेज से देदीप्यमान देख उनके मन में यह विश्वास हो गया कि साक्षात वे शिवा देवी ही मेरी पुत्री के रूप में प्रकट हुई है। उस समय आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी और मेघ जल बरसाने लगे। अग्निशिलाओं की बूझि हुई अग्नियां प्रज्वलित हो उठीं और सब ओर मंगलमय हो गया। वीरिणी के गर्भ से साक्षात जगदम्बा को प्रकट हुई देख दक्ष ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया और बड़े भक्ति-भाव से उनकी बड़ी स्तुति की।
दक्ष के स्तुति करने पर जगन्माता शिवा उस समय दक्ष से बोली प्रजापते तुमने पहले पुत्री रूप में मुझे प्राप्त करने के लिए मेरी आराधना की थी,तुम्हारा वह मनोरथ आज सिद्ध हो गया। अब तुम उस तपस्या के फल को ग्रहण करो। फिर देवी ने शिशु रूप धारण कर लिया और शैशव भाव प्रकट करती हुई जोर जोर से रोने लगी। तब शिशु के रोने की आवाज सुनकर सभी स्त्रियां और दासियाँ प्रसन्नता पूर्वक वहां आ पहुंची। असिकी की पुत्री का अलौकिक रूप देखकर उन सभी स्त्रियों को बड़ा हर्ष हुआ। नगर के सब लोग उस समय जय-जयकार करने लगे। गीत और वाद्यों के साथ बड़ा भारी उत्सव होने लगा। पुत्री का मनोहर मुख देखकर सबको बड़ी ही प्रसन्नता हुई। दक्ष ने वैदिक और कुलोचित्त आचार का विधिपूर्वक अनुष्ठान किया। ब्राह्मणो को दान दिया और दूसरों को भी धन बांटा। सब ओर यथोचित गान और नृत्य होने लगे। भांति भांति के मंगल कृत्यों के साथ बहुत से बाजे बजने लगे।
एक भक्त लिए जब भोलेनाथ बने नौकर
उस समय दक्ष ने अपनी उस पुत्री का नाम उमा रखा। तदनन्तर संसार में लोगों की ओर से उसके और भी नाम प्रचलित किये गए जो सब के सब महान मंगलदायक तथा विशेषतः समस्त दुखों का नाश करने वाले हैं। वीरिणी और महात्मा दक्ष अपनी पुत्री का पालन करने लगे तथा उमा दिनों दिन बढ़ने लगी।और फिर जब दक्ष की वह पुत्री उमा कुछ बड़ी हुई तो तो बारम्बार भगवान शिव की मूर्ती को चित्रित करने लगती थी। इस तरह दक्ष के कन्या के रूप में अवतरित हुई जगदम्बिका बाल्यावस्था से ही भगवान शिव में खुद को सामने लगी और फिर उन्होंने निश्चय किया की वो भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करेगी जिसके बाद क्या हुआ वो हम आपको अपने अगले एपिसोड में बताएँगे।फ़िलहाल शिव पुराण की ये कथा आज यही समाप्त होती है लेकिन आपलोग कही जाइएगा नहीं हम जल्द लेकर हाजिर होंगे इससे आगे की कथा।
अगर आपको हमारी ये कथा अच्छी लगी हो तो इसे जयदा से ज्यादा लाइक और शेयर करें। अब हमें इजाजत दें आपका बहुत बहुत शुक्रिया।