पिछले कुछ दशकों से हमारे समाज में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध में वृद्धि देखने को मिला है। हमारे देश में कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो कन्या को जन्म लेने से पहले कोख में ही उसकी हत्या करने से भी बाज नहीं आते जबकि कुछ लोग ऐसे हैं जो महिलाओं से बलात्कार करने जैसे जघन्य अपराध करने से भी नहीं हिचकते। ऐसे लोगों के मन में ना तो क़ानून का डर है और ना ही समाज का और इसके लिए कुछ हद तक हमारा समाज ही जिम्मेदार है क्यूंकि हमारा समाज बलात्कार के पीड़िता को ही चरित्रहीन मान लेता है और बेटी को बोझ मानकर उसकी कोख में ही हत्या कर देता है। लेकिन दर्शकों बलात्कार और भ्रूण हत्या आज के युग का जघन्य अपराध नहीं है बल्कि पौराणिक काल से ही इसे सबसे घृणित कार्य माना गया है। महाभारत में श्री कृष्ण ने महिलाओं के प्रति होने वाले इन दोनों अपराधों को सबसे बड़ा महापाप बताया है और हिन्दू पुराणों में इस तरह के अपराध के लिए इतनी कठोर सजा का उल्लेख मिलता है, जिसे पढ़कर आपके रूह कांप जायेंगे। तो जानते हैं इन पापों के लिए श्रीकृष्ण खुद देते हैं सजा।
भ्रूण हत्या की सजा
हिन्दू धर्मग्रंथों में कन्या भ्रूण हत्या को पाप नहीं महापाप माना गया है। इसके बावजूद हमारे समाज के सैकड़ों लोगों को कन्या भ्रूण हत्या में हिचक नहीं होती। श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार तो यह छह महापापों में शामिल है। गीता के अनुसार श्रीकृष्ण की दृष्टि में जो सबसे बड़ा पाप है वह है भ्रूण हत्या। तभी तो महाभारत युद्ध की समाप्ति के पश्चात जब द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश के विनाश के उद्देश्य से उत्तरा के गर्भ में पल रहे बालक परीक्षित पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर उसकी हत्या करने की कोशिश की तब भगवान श्रीकृष्ण सबसे अधिक क्रोधित हुए थे। और श्रीकृष्ण उसी क्षण यह घोषणा कर दी थी कि अश्वत्थामा का यह पाप सबसे बड़ा पाप है क्योंकि उसने एक अजन्मे बच्चे की हत्या की कोशिश की थी। श्रीकृष्ण ने इस पाप की सजा स्वयं अश्वत्थामा को दी थी।
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श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के सिर पर लगा चिंतामणि रत्न छीन लिया और शाप दिया कि तुमने जन्म तो देखा है लेकिन मृत्यु को नहीं देख पाओगे यानी जब तक सृष्टि रहेगी तुम धरती पर जीवित रहोगे और कष्ट प्राप्त करोगे।इसलिए वो लोग भी सावधान हो जाये जो गर्भ में पल रहे भ्रूण की जन्म से पहले ही हत्या कर देते है। ऐसे लोगों को मरने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ऐसी सजा देते है जिससे मरने के बाद भी मुक्ति नहीं हो सकती हैं । और गरुड़ पुराण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है इस कलयुग में भी भ्रूण हत्या करने वाले को मरने के बाद अश्व्थामा की तरह ही सजा भुगतनी पड़ती है। गरुड़ पुराण के अनुसार जो भी मनुष्य चाहे वो स्त्री हो या पुरुष भ्रूण हत्या जैसे पाप करता है उसे मरने के बाद नरक में स्थान मिलता है और सृष्टि के अंत काल तक के लिए उसे नरक में मिलने वाली सभी प्रकार की यातनाये और सजाओं को भुगतने के लिए छोड़ दिया जाता है। ऐसे लोगों का दुबारा किसी भी योनि में जन्म नहीं होता। वह अश्व्थामा की तरह ही नरक में आजीवन भटकते रहते हैं।
बलात्कार की सजा
बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के लिए मिलने वाली सजाओं के बारे में भी बताया गया है।गरुड़ पुराण के अनुसार बलात्कार या व्यभिचार मनुष्यों को सीधा नर्क के मार्ग पर ले जाता है। पुराण में यमपुरी जाने के चार मार्ग उत्तर,दक्षिण,पूर्व और पश्चिम का वर्णन किया गया है। जिसमे दक्षिण मार्ग सबसे ज्यादा कष्टकारक वाला है। और इसी मार्ग में वैतरणी नदी भी है जो खून और पीब से लबालब भरी होती है। इतना ही नहीं इस नदी में कई प्रकार के भयानक कीड़े एवं अन्य जलीय जिव भी है। गरुड़ पुराण के अनुसार मनुष्य संसार में रहकर जैसा कर्म करता है मरने के बाद उसे उसका पूर्ण फल प्राप्त होता है।जब कोई अपराधी बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देता है तो वह यह समझता है की उसे कुकर्म करते हुए कोई नहीं देख रहा है लेकिन वह यह भूल जाता है की शरीर में मौजूद पांच तत्व एवं सूर्य, चंद्रमा के अलावा ब्रह्मा के पुत्र श्रवण एवं उनकी पत्नियां श्रावणी हर समय हर मनुष्य पर पर नजर रखती हैं।शास्त्रों में भी लिखा है की बलात्कारी या व्यभिचारी को इसी नदी में से होकर यमपुरी की और लाया जाता है। व्यभिचार करने वाला स्त्री हो या पुरुष सभी को एक समान सजा मिलती है।
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ऐसे मनुष्यों की आत्मा के नरक में पहुंचने पर यमराज उसकी सजा तय करते हैं। फिर इनको तामिस्त्र नामक नरक में भेजा जाता है। जहां कई वर्षों तक इन्हे लोहे के एक ऐसे तवे पर रखा जाता है जो सौ योजन यानि चार सौ किलोमीटर लंबा एवं इतना ही चौडा होता है। इस तवे के नीचे हर वक्त आग जलती रहती है और ऊपर से सौ सूर्यों के समान तेज धूप आती रहती है। इस तवे पर बलात्कारी को निर्वस्त्र कर छोड दिया जाता है।
तामिस्त्र नामक नरक में जब बलात्कारी की सजा पूरी हो जाती है उसके बाद उसे अन्य कई वर्ष तक तप्तसूर्मी नामक नरक में भेज दिया जाता है जहाँ उसे लोहे से की गर्म मूर्तियों से सौ वर्षो तक चिपका कर रखा जाता है। व्यभिचार यदि स्त्री ने किया है तो उसे पुरुष प्रतिमा से और यदि पुरुष ने किया हैं तो उसे स्त्री की गर्म प्रतिमा से चिपकाकर रखा जाता है।
तप्तसूर्मी की सजा पूरी होने के बाद बलात्कारी की आत्मा का जब दुबारा पृथ्वी पर जन्म होता है तो उसे बैल या घोड़ा बनकर पृथ्वी पर रहना होता है। चौरासी लाख योनियों को भोगने के पश्चात फिर कही जाकर ऐसी आत्माओं को पुनः मनुष्य शरीर मिलता किंतु वह भी स्त्री रूप में तथा सदा रोगी बना रहता है।
इसके आलावा गरुड़ पुराण में यह भी बताया गया है की जो पुरूष परस्त्री से संबंध रखता है तो उसे मरने के बाद नर्क में लोहे के गर्म सलाखों को आलिंगन करवाया जाता है। जो भी पुरूष अपने गोत्र की स्त्री से संबंध बनाता है तो उसे नर्क भोगकर लकड़बघ्घा रूप में जन्म लेना पड़ता है।वहीं, कुंवारी लड़कियों से संबंध बनाने वाले पुरूष को नर्क की घोर यातना सहने के बाद अजगर के रूप में जन्म लेना पड़ता है। यही नहीं, जो भी व्यक्ति काम भावना से पीड़ित होकर गुरू की पत्नी का मान भंग करता है तो ऐसा व्यक्ति कई वर्षों तक नर्क की यातना सहने के बाद गिरगिट की योनि में जन्म लेता है। साथ ही जो व्यक्ति अपने मित्र के साथ विश्वास घात करके उसके ही पत्नी से संबंध बनाता है तो उसे गधे की योनि में जन्म लेना पड़ता हैं।