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भगवान शिव के त्रिशूल,डमरू,नाग का रहस्य

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भगवान शिव के त्रिशूल,डमरू,नाग का रहस्य

हम सभी जानते हैं की भगवान शिव की छवि एक वैरागी पुरुष की मानी जाती है। भगवगन शिव के पहनावे भी बांकी देवताओं से अलग है और वह और देवताओं की तरह किसी स्वर्णिम दिव्य महल में भी नहीं रहते बल्कि वह कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं। इतना ही नहीं वह रथ या घोड़ों की सवारी भी नहीं करते बल्कि उनकी सवारी बैल है। इसी तरह भगवान शिव के अस्त्र शस्त्र और आभूषण भी बांकी देवताओं से अलग है। दोस्तों आपने देखा होगा की भगवान शिव अपने सिर पर चन्द्रमा,हाथों में त्रिशूल एवं डमरू और गले में आभूषण के रूप में नाग हमेशा धारण किये रहते हैं। अब आपके मन में सवाल जरूर उठ रहा होगा की क्या ये सभी चीज भगवान शिव के साथ ही प्रकट हुए थे या फिर बाद में यह भगवान शिव के साथ जुड़ते गए। तो आपके मन में उठ रहे इन्ही सारे सवालों के जवाब बताने जा रहे हैं। 

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भगवान शिव का त्रिशूल

शिवपुराण के विशेश्वर संहिता के अनुसार वैसे तो भगवान शिव सारे अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञाता है परन्तु उनका प्रमुख अस्त्र धनुष और त्रिशूल है। दोस्तों जैसा की आप सभी जानते हैं की भगवान शिव को त्रिगुणातित के नाम से भी जाना जाता है। यानि भगवान शिव खुद में सृष्टि के तीनो गुण रज, तम, सत गुणों को समान रूप से समाहित किये हुए है। और यही तीनो गुण तीन शूल के रूप में भगवान शिव हमेशा अपने हाथ में धारण किये रहते हैं जिसे हम सभी त्रिशूल के नाम से जानते हैं।ऐसा भी माना जाता है की  और समय आने पर भगवान शिव इसका उपयोग दुष्टों का संहार करने के लिए करते हैं।

भगवान शिव का डमरू

शिवपुराण में ही इस बात का भी वर्णन किया गया है की भगवान शिव के हाथों में डमरू कैसे आया। शिवपुराण की माने तो सृष्टि की रचना के समय जब देवी सरस्वती प्रकट हुई तो  देवी ने सृष्टि की उत्पति के लिए अपनी विणा से ध्वनि को जन्म दिया परन्तु वह ध्वनि सुर और संगीत विहीन थी। उस समय भगवान शिव ने नृत्य करते हुए एक वाद्ययंत्र प्रकट किया और उसे बजाने लगे बजाने लगे और उसी ध्वनि से व्याकरण और संगीत के धन्द, ताल का जन्म हुआ।बाद में उस वाद्ययंत्र को डमरू नाम दिया गया। इसके आलावा शिवपुराण में बताया गया है कि डमरू ब्रह्म का स्वरूप है जो दूर से विस्तृत नजर आता है लेकिन जैसे-जैसे ब्रह्म के करीब पहुंचते हैं वह संकुचित हो दूसरे सिरे से मिल जाता है और फिर विशालता की ओर बढ़ता है। सृष्टि में संतुलन के लिए इसे भी भगवान शिव अपने साथ लेकर प्रकट हुए थे।  

भगवान शिव के गले में नाग

दोस्तों आपने देखा होगा की भगवान शिव के गले में हमेशा एक नाग लिपटा हुआ रहता है। भगवान शिव के गले में लिपटे नाग का नामा वासुकि है जो नागलोक के राजा भी हैं। ऐसा मान जाता है की समुद्र मंथन के समय इसी वासुकि नाग ने रस्सी का काम किया था जिससे समुद्र मंथन का कार्य सम्पूर्ण किया गया था और जब भगवान शिव ने मंथन से निकले विष को ग्रहण किया तो वासुकि ने उनकी मदद की थी। और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें नागलोक का राजा बना दिया। तब वासुकि ने उन्हें अपने गण के रूप में रहने का वरदान मांग लिया तब शिव जी ने उन्हें  आभूषण के रूप में अपने गले में लिपटा लिया।

भगवान शिव के सिर पर चन्द्रमा कैसे आया

शिव पुराण के अनुसार चन्द्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से हुआ था। ऐसा माना जाता है की ये कन्याएं 27 नक्षत्र हैं। विवाह के पश्चात् चन्द्रमा अपनी 27 पत्नियों में रोहिणी से सबसे अधिक प्रेम करने लगे। यह बात चन्द्रमा के बांकी पत्नियों को रास नहीं आया और उन्होंने इसकी शिकायत अपने पिता दक्ष प्रजापति से कर दिया। यह सुन दक्ष प्रजापति क्रोधित हो उठे और उन्होंने चन्द्रमा को चन्द्रमा को क्षय होने का शाप दे दिया। इसके बाद चन्द्रम का स्वास्थ्य धीरे धीरे बिगड़ने लगा तब एक दिन देवर्षि नारद ने उन्हें आकर बताया की इस शाप से तुम्हे देवाधिदेव महादेव ही बचा सकते हैं इसलिए मेरी मानो तो तुम भगवान शिव की आराधना करो। उसके बाद इस शाप बचने के लिए चन्द्रमा ने भगवान शिव की तपस्या की। चन्द्रमा की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने चन्द्रमा के प्राण बचाए और उन्हें अपने शीश पर स्थान दिया।और ऐसा माना जाता है की जहां चन्द्रमा ने तपस्या की थी वही स्थान आज सोमनाथ कहलाता है। और इसके आलावा ये भी मान्यता है कि प्रजापति दक्ष के शाप से ही चन्द्रमा घटता बढ़ता रहता है।

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