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गाली देने वालों के लिए हिन्दू धर्म में क्या सजा बताई गई है?

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आज के समय में गाली देना बहुत साधारण सी बात है. हर छोटी बात पर गाली निकलती है. चाहे व्यक्ति दोस्तों के साथ हो या गुस्से में हो यहाँ तक कि खुश भी हो तब भी गाली दे देता है. गाली देना अपमानजनक है, इससे व्यक्ति के स्तर का पता चलता है, गाली देने वाला व्यक्ति अपने संस्कारों और शिक्षा का परिचय देता है, इन सब बातों को अलग रखकर व्यक्ति गाली देते समय कुछ भी नहीं सोचता. जब आप बात करते हैं तो वो केवल बात करना नहीं अपितु आपका पूर्ण परिचय है.

वास्तव में गाली सुन्ना किसी को पसंद नहीं लेकिन मनुष्य गुस्से में इतना पागल हो जाता है कि उसे पता ही नहीं चलता कि वो किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग कर रहा है. गाली देना मनुष्य की भाषाशैली का हिस्सा बन गया है. दुनिया में कोई ऐसी जनजाति नहीं है जहाँ गाली नहीं दी जाती. हाँ, अलग अलग जगह पर अलग प्रकार की गालियों को गलत माना जाता है. एक शोध के अनुसार यह भी सामने आया है कि गाली देने से किसी भी समस्या को झेलने की क्षमता बढ़ जाती है या मनुष्य अधिक हिम्मत से जीवन की विषम परिस्थितियों का सामना कर सकता है. परन्तु इसकी आड़ में अपशब्द बोलना या अभद्र भाषा का प्रयोग करना व्यक्ति के अच्छे संस्कारों का परिचय नहीं देता.

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ग़ौर किया जाए तो महाभारत जैसे महाकाव्य में जिसमे इतिहास के सबसे बड़े युद्ध का वर्णन है, में भी किसी भी प्रकार की गाली का प्रयोग नहीं हुआ है. इतना भीषण युद्ध, इतनी मार काट, भयंकर क्रोधाग्नि में जल रहे लोग भी एक दूसरे के लिए गालियों का प्रयोग नहीं करते थे. दरअसल गाली देना भी किसी को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने से कम नहीं. यह मौखिक हिंसा है. गालियों के ज़रिये आप दूसरे व्यक्ति पर अपनी जिव्हा से प्रहार करते हैं. और साथ ही निम्न स्तर की भाषा का प्रयोग करके अपने अशिक्षित होने का भी परिचय देते हैं.

यदि आप गाली देते हैं तो क्या होता है. न केवल व्यक्ति की भाषा अपितु उसका स्तर ही गिर जाता है और मनुष्य के अभद्र होने का पता चलता है. व्यक्ति के संस्कारों का पता चलता है जिससे यह दोष न केवल उस तक सीमित होता है अपितु उसके माता पिता तक पहुँचता है.

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आप जिस व्यक्ति को गाली देते हैं वो ज़रूर आपको भी अपशब्द कहेगा जिससे आपके सम्बन्ध तो ख़त्म होंगे ही साथ में आपका मस्तिष्क ऐसी स्थिति में होगा के आप उसके लिए और भी बुरा सोचेंगे. आपके मन में हिंसा का भाव और भी ज़्यादा बढ़ जाता है और हिंसा बहुत सी ग़लत चीज़ों को परिणाम दे सकती है.

कहीं न कहीं आप गाली देने, अपशब्द बोलने या अभद्र भाषा का प्रयोग करने से दूसरों की बद्दुआ भी लेते हैं और किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव ज़रूर होता है, इसलिए अपने अच्छे के लिए ऐसे व्यवहार से दूर रहना ठीक है.

कलियुग में लोग नारी को भी गाली देने से नहीं चूकते. जबकि भारत में सदैव ही नारी को उच्च स्थान दिया गया है. आदिकाल से ही नारी पूजनीय रही है. महर्षि गर्ग ने कहा है कि जिस घर में नारी सुखी और प्रसन्न है वहां लक्ष्मी जी का वास होता है और ऐसे घरों में देवी देवता भी निवास करते हैं. नारी को गाली देना अपने विनाश को निमंत्रण देने के समान है. नारी के प्रति किसी भी प्रकार का निरादर गंभीर अपराध को परिणाम देता है.

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गरुण पुराण में अनेक प्रकार के नरकों का वर्णन किया गया है जिसमे से एक अप्रतिष्ठ नर्क है. जो व्यक्ति ब्राह्मणों या धार्मिक व्यक्तियों को सताते या पीड़ा देते हैं जिसमे गाली गलौज करना भी शामिल है, ऐसे लोगों को यह नर्क भोगना पड़ता है. यह नर्क मूत्र, पस और उल्टी से भरा हुआ है.

तो ये थे गाली देने के परिणाम…

दोस्तों अगर आप उनमे से हैं जो गाली नहीं देते और अगर आपके अंदर इतना धैर्य, संयम और शक्ति है कि आप पर दूसरों की गालियों का कोई असर नहीं होता तो कोई भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. इसका एक बेहतरीन उदाहरण गौतम बुद्ध ने दिया है.आइये जानते हैं.

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महात्मा बुद्ध के इस वृत्तांत के विषय में:-

अच्छे और सच्ची प्रवृति के लोगों को अक्सर नापसंद किया जाता है. इसी प्रकार गौतम बुद्ध को पसंद न करने वालों की संख्या भी कम नहीं थी. एक बार गौतम बुद्ध एक गाँव की ओर जा रहे थे तब रास्ते में कुछ लोगों ने उन्हें अपशब्द बोलना आरम्भ कर दिया. लोग लगातार गालियां दिए जा रहे थे, उन सबके चुप होने के बाद बुद्ध ने पूछा यदि आपकी बात ख़त्म हो गयी हो तो क्या मैं जा सकता हूँ. लोग देखकर हैरान हो गए कि इतनी गालियां सुनने कि बाद भी बुद्ध पर कोई असर नहीं हुआ. तब लोगों ने कहा कि हमने कोई बातें नहीं की है तुम्हें गालियां दी हैं, तुम पर कोई असर नहीं होता? बुद्ध ने उत्तर दिया कि यदि तुमने कुछ वर्ष पूर्व यह सब बोला होता तो अवश्य ही मैं तुम्हे ुम्हरी ही भाषा में उत्तर देता क्यूंकि तब मैं भी तुम सबके समान अहंकारी था परन्तु अब मुझे गाली देना या अपशब्द कहना एक मृत व्यक्ति को गाली देने के समान है. मेरे विचार में कोई भी मुझे तब तक कुछ नहीं दे सकता जब तक मैं उस वस्तु को स्वीकार न करूँ. तुमने मुझे गालियां तो दीं परन्तु मैंने स्वीकारी ही नहीं तो इन गालियों का मुझ पर प्रभाव होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता. मुझे तुम लोगों पर दया आती है क्यूंकि अब तुम ये गालियां अपने साथ ही ले जाओगे और अपने घर परिवार, मित्र सम्बन्धियों में बांटोगे. तुम्हारी गालियां तुम्हें ही मुबारक. तो दोस्तों इस प्रसंग से गौतम बुद्ध ने बहुत ही तार्किक तथ्य दिया है और सभी को इस बात पर विचार करना चाहिए. 

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कहा जाए तो महान चरित्र, हमारे ग्रंथों में उल्लेखनीय विचार एक अच्छा जीवन जीने का बेहतरीन मार्गदर्शन हैं परन्तु आज के समय में मॉडर्नाइजेशन के कारण लोग इन विचारों को अनदेखा कर देते हैं या मानते नहीं हैं. उन्हें लगता है कि यदि अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे तो लोग उनका मज़ाक उड़ाएंगे या उन्हें बैक्वोर्ड या पिछड़ा हुआ समझेंगे. बेहतर यही है कि यह सब दिखावा छोड़कर हमें समय रहते स्वयं को संभल लेना चाहिए. चरित्रनिर्माण मनुष्य के लिए सदा से ही बहुत महत्वपूर्ण रहा है. हमें हमेशा दूसरों के अनुसार नहीं अपने अनुसार अपना निर्माण करना चाहिए.

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आप ऐसा भी सोच सकते हैं कि यदि कोई गाली दे तो क्या करें? उसकी बातों को सुन लें? जवाब देना भी तो ज़रूरी है? जी हाँ यह बिलकुल सही है लेकिन कई बार ऐसे लोगों को कुछ न बोलकर इन्हें इग्नोर करना ही अच्छा होता है. विभिन्न परिस्थितियों में अलग अलग प्रकार से प्रितिक्रिया देनी होती है. जिस प्रकार महात्मा बुद्ध ने गाली देने वालों को बिलकुल शांति से चुप करा दिया. अक्सर इस प्रकार के लोग आपसे प्रतिक्रिया चाहते हैं क्यूंकि उनका उद्देश्य ही आपको परेशान करना होता है. जब आप कोई प्रतिक्रिया नहीं देते तो उनकी परेशानी बढ़ जाती है और वो अपनेआप में ही घुटने लगते हैं. इसलिए प्रयास तो यही करना चाहिए कि इस प्रकार के लोगों को शांत रहकर प्रतिक्रिया दें. जब आपका स्वयं पर नियंत्रण होगा तो आप स्वयं ही समझ जायेंगे कि किस व्यक्ति के सामने आपको किस प्रकार की प्रतिक्रिया देनी है. प्रयास करें कि हमें अपनी वाणी को ठीक रखना है. महान संत कबीरदास ने अपने एक दोहे में भी कहा है:

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये | औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ||

संत कबीरदास

तो कहीं न कहीं दूसरों की गालियों के बदले आपकी शीतल वाणी उन्हें जीवन भर के लिए सीख दे सकती है. तो चलिए अपनी वाणी, अपनी भाषा और चरित्र का निर्माण कर वास्तव में मनुष्य बनकर दिखाते हैं. सम्मान के बदले ही सम्मान मिलता है, किसी का अपमान करके कोई कभी सम्मान नहीं प्राप्त कर सकता. जब हम दूसरों को कुछ अच्छा नहीं देते तो अपेक्षा क्यों रखते हैं के वो आपको सम्मान देंगे. हम किसी पर अधिकार नहीं कर सकते, इस संसार में सबका अस्तित्व है, सबकी एक अलग पहचान है प्रत्येक व्यक्ति महत्वपूर्ण है

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