आज की कड़ी आधारित है प्रसिद्ध पौराणिक चरित्र अहिल्या पर. इस लेख में हम आपको बताएँगे कि अहिल्या क्यों हज़ारों वर्षों तक एक पत्थर के रूप में स्थिर रही. क्यों ऋषि गौतम ने पत्नी अहिल्या का त्याग कर दिया था.
अहिल्या की उत्पत्ति
अहिल्या की उत्पत्ति ब्रह्मा से हुई. उन्हें अनेक उच्च गुणों के साथ उत्पन्न किया गया था. साथ ही वह बहुत सुंदर और आकर्षक थी. जब वो विवाह योग्य हुई तब उनके लिए वर की खोज आरम्भ हुई .ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न इस कन्या की अच्छे से देखभाल कर सके. इंद्र समेत सभी ऋषि अहिल्या के रूप पर मोहित थे और उससे विवाह करना चाहते थे. ब्रह्मा ने एक शर्त रखी कि जो व्यक्ति सबसे पहले तीन लोकों की परिक्रमा करके वापस आएगा .वही अहिल्या के साथ विवाह सूत्र में बंधने योग्य होगा. देवराजइंद्र ने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर परिक्रमा पूर्ण की और ब्रह्मा के पास अहिल्या का हाथ मांगने पहुंचे.
अहिल्या का विवाह
लेकिन नारद मुनि ने ब्रह्मा जी से कहाकि सर्वप्रथम यह परिक्रमा गौतम ऋषि ने पूर्ण की है. मुनि ने विस्तार से बताया कि पूजा करते समय गौतम ऋषि ने एक गर्भवती कामधेनु गाय की परिक्रमा की . कामधेनु गाय का स्थान तीन लोकों से भी उच्च है. इसलिए गौतम ऋषि ही अहिल्या से विवाह करने का अधिकार रखते हैं. ब्रह्मा जी ने अहिल्या का विवाह गौतम ऋषि के साथ संपन्न करने का निर्णय लिया. इंद्र को यह बात मन ही मन खटक रही थी. उसे गौतम ऋषि से ईर्ष्या होने लगी.
देवराज इंद्र का छल
विवाह के पश्चात ऋषि गौतम और अहिल्या वन में रहकर तपस्या करते थे. एक दिन ऋषि स्नान के लिए आश्रम से बाहर निकले. इंद्र ने अवसर देख गौतम ऋषि का वेश धारण किया और अहिल्या के पास पहुंचकर प्रणय याचना की. कुछ स्थानों पर उल्लेख मिलता हैकि वह पहचान गयी थीकि उसके पास ऋषि नहीं ऋषि के रूप में इंद्र हैं. जिस कारण उसको अपने रूप पर अहम् हो गया. वहीँ कुछ धार्मिक पुस्तकों के अनुसार अहिल्या के साथ इंद्र ने छल किया था. फिर भी अहिल्या को बिना अपराध किये ही दंड का पात्र बनना पड़ा.
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अहिल्या को श्राप
जब इंद्र आश्रम से निकल रहे थे तो स्नान ध्यान करके वापस आते समय ऋषिगौतम ने उन्हें देख लिया .तब ऋषि ने इंद्र और अहिल्या को श्राप दिया. अहिल्या को हज़ारों वर्षों तक पाषाण बने रहने का श्राप मिला. साथ ही ऋषि ने कहा कि उसको तभी मुक्ति मिल सकती है .जब श्री राम इस वन में प्रवेश करेंगे. इसके पश्चात वैवाहिक जीवन को त्यागकर ऋषिगौतम हिमालय पर्वत पर तपस्या करने चले गए.
अहिल्या की मुक्ति
हज़ारों वर्षों पश्चात एकबार भगवान् राम मिथिलापुरी के वन उपवन में विहार करने के लिए निकले. वहां उन्होंने एक स्थान को देख विश्वामित्र से कहा कि यह कोई आश्रम लगता है. तब ऋषि ने बताया कि यह ऋषि गौतम का आश्रम था . यहाँ उनकी पत्नी पाषाण के रूप में स्थिर हैं. विश्वामित्र ने पूरा वृत्तांत बताते हुए राम से कहा कि तुम उसका उद्धार करो .इस प्रकार वह ऋषिगौतम के श्राप से मुक्त हुई. ऋषिगौतम ने इंद्र को उनके शरीर में सहस्रयोनि उत्पन्न होने का श्राप दिया. चूँकि इंद्र ने काम वासना के कारण ऐसा पाप किया था .इसलिए इंद्र के शरीर में ऋषि के श्राप के परिणामस्वरूप हज़ार योनियां उत्पन्न हो गयीं. अपनी ऐसी दशा देख इंद्र को आत्मग्लानि हुई और वो ऋषि से क्षमा मांगने लगे. तब ऋषि ने योनियों को हज़ार आँखों में परिवर्तित कर दिया.