पौराणिक काल में जब भी अधर्म, क्रूरता, निर्दयता को बढ़ावा देने वालों ने जन्म लिया है, उनका निश्चित ही विनाश हुआ है। सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने विभिन्न युगों में भिन्न भिन्न रूपों में अवतरित होकर अधर्म का नाश किया है। द्वापर युग में भगवान कृष्ण द्वारा कंस वध से लेकर महाभारत तक, सभी अधर्मियों और पाप का विनाश, त्रेता युग में भगवान राम द्वारा रावण का वध, और सतयुग में भगवान नरसिंह के रूप में हिरण्यकशिपु का वध। इनके अतिरिक्त भगवान विष्णु ने और भी अनेक अवतार लिए और पापियों का विनाश किया। आज के लेख में हम आपको बताएँगे की भगवान शिव ने क्यों किया नरसिंह का वध ?
हिरण्यकशिपु की कथा
सतयुग में एक अत्यंत निर्दयी असुर हिरण्यकशिपु था जो दैत्यों का राजा था। कठिन तपस्या से उसने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि न तो उसे मनुष्य मार सकता है न ही पशु, न तो उसे दिन में मारा जा सकता है न ही रात में, न घर के अंदर न ही बाहर और न ही किसी अस्त्र या शस्त्र से उसका वध किया जा सकता है। ऐसा वरदान प्राप्त कर उसे अहम हो गया था कि वो संसार में सबसे अधिक शक्तिशाली है और कोई भी उसका वध नहीं कर सकता। इस प्रकार वो स्वयं को भगवान समझने लगा और चाहता था कि उसकी प्रजा विष्णु की नहीं अपितु उसकी पूजा करे। परन्तु उसका स्वयं का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।
होलिका दहन
प्रह्लाद के क्रूर और घमंडी पिता ने उसका वध करने के अनेक प्रयास किये परन्तु असफल रहा। तब अंततः हिरण्यकशिपु ने अपनी बहिन होलिका जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था से कहा कि वो प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि पर बैठ जाए। परन्तु भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और प्रह्लाद के प्राण बच गए परन्तु होलिका अग्नि से जल गयी।
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हिरण्यकशिपु का वध
इसके पश्चात जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को प्रताड़ित करने लगा तब एक खम्भे से प्रकट होकर नरसिंह रूप में भगवान विष्णु ने संध्या के समय, घर की चौखट पर, अपनी गोद में उठाकर हिरण्यकशिपु की छाती को अपने नखों से चीरकर उसका वध किया। और इस प्रकार ब्रह्मा जी द्वारा दिया हुआ वरदान भी बना रहा और अधर्म एवं पाप का विनाश भगवान द्वारा किया गया। इस भयावह वृत्तांत के पश्चात नरसिंह भगवान का क्रोध शांत नहीं हुआ। उनके क्रोध से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड भयभीत हो गया। ऐसी स्थिति देख सभी देवों ने महादेव शिव से जाकर प्रार्थना की कि वो नरसिंह भगवान का क्रोध शांत करें।
नरसिंह भगवान का अंत
तब शिव जी ने सर्वप्रथम वीरभद्र को नरसिंह को शांत करने के लिए भेजा। परन्तु वीरभद्र भी उनका क्रोध शांत नहीं कर सके। तब अंततः महादेव ने सर्वेश्वर अवतार लिया। शिव जी के इस रूप में मनुष्य, पक्षी और शेर का समावेश था। शिव जी के इस अवतार को शरभ अवतार भी कहा जाता है। सर्वेश्वर अवतार में महादेव ने नरसिंह भगवान का क्रोध शांत करने का प्रयास किया परन्तु नहीं कर सके, तब निरंतर 18दिनों तक सर्वेश्वर जी और नरसिंह भगवान का युद्ध चला।
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इस युद्ध का कोई अंत नहीं दिख रहा था। जब समय के साथ नरसिंह भगवान का क्रोध शांत होने लगा तब उन्होंने विचार किया कि शिव जी ने यह रूप केवल उनका क्रोध शांत करने के लिए लिया है तब नरसिंह भगवान स्वयं श्री हरी विष्णु में विलीन हो गए। कुछ कथाओं के अनुसार शिव जी का शरभ अवतार का रूप बहुत भयंकर था। उनके सामने नरसिंह रूप कि शक्तियां क्षीण हो गयीं थीं और नरसिंह भगवान ने समर्पण कर दिया एवं स्वयं को शांत कर वे भगवान विष्णु में विलीन हो गए।