भगवान शिव जिनके मित्र भूत हैं और जो गले में मुण्डियों की माला पहनते हैं। शिवजी को शीश पर चन्द्रमा धारण किये हुए देखा जाता है। शिव विनाश का प्रतीक हैं और चन्द्रमा असीम शीतलता का। दोनों ही एक दूसरे के विपरीत हैं। जो महादेव स्वयं में ही सम्पूर्ण हैं उनको अपने शीश पर चन्द्रमा धारण करने की क्यों आवश्यकता पड़ी। इस पोस्ट में हम बताएँगे कि महादेव शिव अपने शीश पर चंद्र क्यों धारण करते हैं।
वास्तव में शिव जी के चन्द्रमा धारण करने के दो कारण मिलते हैं।
शिव और समुद्र मंथन
ये तो आप जानते ही हैं कि समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला। जिसे शिव जी ने अपने कंठ में धारण कर लिया था। क्यूंकि देवता और दैत्य दोनों ही रत्नों और अमृत कलश को पाना चाहते थे। परन्तु विष स्वीकार करने से सबसे मना कर दिया था। तब शिव जी इस विष को पी गए थे जिस कारण उनका कंठ नीला हो गया। विष के प्रभाव से उनके सम्पूर्ण शरीर में बहुत गर्मी हो गयी। उनके शरीर का तापमान बढ़ता ही जा रहा था। यह देख चन्द्रमा और अन्य सभी देवताओं ने शिव जी से आग्रह किया कि वो अपने मस्तिष्क पर चन्द्रमा को धारण कर शरीर को शीतलता प्रदान करें। देवताओं का आग्रह स्वीकार करते हुए शिव जी ने चन्द्रमा को अपने शीश पर धारण कर लिया। तभी से चंद्र देव उनके शीश पर सुशोभित हैं।
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शिव और चन्द्रमा
प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्र के साथ किया। इन 27 पुत्रियों में रोहिणी अत्यंत सुन्दर और आकर्षक थी। चंद्र सुन्दरता प्रेमी थे और इस कारण वो रोहिणी को सबसे अधिक प्रेम करते थे। यह देख दक्ष की अन्य पुत्रियां दुखी रहती थीं। उन सबने अपना कष्ट पिता को जाकर बताया। तब दक्ष ने क्रोध में चन्द्रमा को श्राप दिया कि तुम क्षय रोग से पीड़ित हो जाओगे। श्राप के प्रभाव से धीरे धीरे चन्द्रमा का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। चन्द्रमा को रोगग्रस्त देख नारद मुनि दुखी हो गए। उन्होंने चन्द्रमा को महादेव आशुतोष की आराधना करने के लिए कहा। चंद्रदेव बिना किसी विलम्ब शिव जी की आराधना में लिन हो गए। उनकी इस भक्ति को देख शिव जी प्रसन्न हुए। चन्द्रमा को पुनर्जीवन प्रदान कर अपने शीश पर धारण कर लिया। इसलिए जो लोग रोगग्रस्त हों उन्हें शिव जी की आराधना करनी चाहिए।