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निधिवन में श्रीकृष्ण आज भी रचाते हैं रासलीला

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VRINDAVA-NIDHIVAN

वृन्दावन की भूमि जो भगवान श्रीकृष्ण की माखनचोरी से रासलीला तक,सारी लुभा देने वाली गतिविधियों की साक्षी है।आज भी यह श्री कृष्ण के प्रेम से सराबोर है। यहाँ के कण-कण में आज भी भगवान श्री कृष्ण बसते हैं। वृन्दावन की ही एक जगह निधिवन है जिसके बारे में कहा जाता है भगवान आज भी गोपियों के साथ रासलीला करने आते हैं। दोस्तों इस पोस्ट में हम आपको इसी निधिवन के बारे में बताने जा रहे हैं।

निधिवन की कथा

माना जाता है की यहाँ पर भगवान ने राधा-रानी के साथ महारास किया था। रसों के समूह को ही रस कहा जाता है। जहाँ सभी दिव्य रस जैसे-श्रृंगार रस,वात्सल्य रस,माधुर्य रस एक साथ एकत्रित होते हैं उसे महारास कहते हैं। निधि अर्थात राधा-रानी ,यह एक ऐसा स्थल है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने राधा का श्रृंगार किया ,उनके साथ महारास किया। इसीलिए इस दिव्य वन को निधिवन कहा जाता है। निधिवन वन के वृक्ष अनंत जन्मो से तपस्या कर रहे ऋषि-मुनि हैं। जो कृष्ण प्रेम के कारण यहाँ वृक्षों के रूप में विराजमान हैं। ये ऋषि-मुनि गोपी भाव से भावित होकर यहाँ आये।

 गोपी कौन है ?

जो ह्रदय से भगवान के लिए समर्पित है वे सब गोपियाँ है। जो अपने इन्द्रियों से भगवत रस का पान करते हैं वे सभी गोपी हैं। अचंभित कर देनेवाली बात यह है की संध्या के पश्चात् निधिवन में जाने की अनुमति नहीं है। यदि यहाँ कोई रात में रुक गया तो या तो वो पागल हो जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है। संध्या होते ही यहाँ के पशु-पक्षी भी वन से चले जाते हैं। इसका कारण यही है की यहाँ हर रात श्री कृष्ण आते हैं और गोपियों के साथ रास रचाते हैं। अनेक लोगों ने रात में रुक कर  भगवान के दर्शन पाने का प्रयास किया। परन्तु या तो उनकी मृत्यु हो गयी या मानसिक संतुलन खो बैठे।

रंगमहल मंदिर

यही नहीं निधिवन में स्थित रंगमहल मंदिर में हर रात्रि पान,लड्डू,चन्दन का पलंग,शृंगार का सामान आदि रखा जाता है। मंदिर को भी रात में बंद कर दिया जाता है। जब सुबह मंदिर के पट खोले जाते हैं पान तथा लड्डू खाया हुआ मिलता है । और सामन बिखरा हुआ। निधिवन की एक और विशेषता है यहाँ के तुलसी के पेड़ जो जोड़े में पाए जाते हैं। कहा जाता है जब राधा-कृष्ण रात में रास रचाते हैं तो जोड़े में स्थित ये तुलसी के पौधे भी गोपियाँ बन जाते हैं। वह क्या अदभुत दृश्य होता होगा।

विशाखा कुंड

विशाखा कुंड जिसे भगवान ने अपनी वंशी से खोदा था। कहा जाता है की जब भगवान गोपियों के साथ रासलीला कर रहे थे । तब राधा की सखी विशाखा को प्यास लगी। उसी उसी सा,समय भगवान के द्वारा इस कुंड का निर्माण किया गया था। तब से यह कुंड विशाखा कुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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वंशी चोर राधा-रानी का मंदिर

वंशी चोर राधा-रानी का मंदिर भी यहीं स्थित है।ऐसा माना जाता है की हर क्षण अपने वंशी में रमे हुए श्रीकृष्ण से राधा-रानी नाराज हो गयी थी। और भगवान की मुरली चुराकर यहाँ रख दी थी। एक भक्त ने तो वन में रुककर भगवान की रासलीला देखने की कोशिश की। लेकिन जब सुबह निधिवन को खोला गया तो वह मूख-बधिर हो चूका था और अपने प्राण त्यागने ही वाला था। तब उसने वहां एकत्रित लोगों से एक पेन और पेपर माँगा। फिर उसमे उस रात के अनुभव को शब्दों में उतारा। उसके बाद उसकी मृत्यु हो गयी। यह कागज़ अभी भी मथुरा के सरकारी संग्रहालय में है।

निधिवन का रहस्य

विशेषज्ञों ने भी यह माना है की रंगमहल में हुई गतिविधियां किसी पशु या पक्षी के द्वारा नहीं की जाती। हैरान कर देने वाली बात यह है की निधिवन के आस-पास के निवासी शाम के सात बजे के बाद इस वन को ओर देखते भी नहीं हैं। अनेक घरों में तो खिड़कियां भी नहीं है। स्थानीय निवासियों के अनुसार रात में घुंघरू और बांसुरी की आवाज सुनाई देती है। पर उधर देखने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता। पाठकों आज तक यह वन एक रहस्य ही बना हुआ है।

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