हिन्दू धर्म में रामायण को एक पवित्र धर्मग्रन्थ माना गया है। जिसमे सीता राम लक्ष्मण हनुमान और रावण के अतिरिक्त एक और अहम् पात्र मेघनाद का वर्णन मिलता है। जिसकी भूमिका को चाहकर भी नहीं भुलाया जा सकता। मेघनाद रावण का ज्येष्ठ पुत्र था और वह अपने पिता के समान ही शक्तिशाली भी था। मेघनाद ने इंद्र को हराकर तीनोलोक पर अपना अधिपत्य स्थापित किया था इसलिए उसे इंद्रजीत के नाम से जाना जाता है। लेकिन मेघनाद ने क्यों किया इंद्र से युद्ध ?
मेघनाद का जन्म
ये तो हम सभी जानते हैं की रावण ने अपने बाहुबल से तीनो लोकों पर विजय प्राप्त की थी। रावण शक्तिशाली होने के साथ साथ एक महाज्ञानी भी था। और रावण ने त्रिलोक्य विजयी होने के बाद मयासुर की पुत्री मंदोदरी से विवाह किया था। विवाह के कुछ दिन पश्चात रावण के मन में ये चाहत उत्पन्न हुई की उसे मंदोदरी से कोई ऐसा पुत्र प्राप्त हो जो उससे भी शक्तिशाली हो।
इसलिए जब मंदोदरी ने गर्भ धारण किया और पुत्र के जन्म लेने का समय आया तो उसने सभी ग्रहों को अपने पुत्र कि जन्म-कुंडली के 11-वें स्थान पर बैठा दिया ,परंतु रावण कि अभिलाषा से परिचित शनिदेव 11- वें स्थान से 12- वें स्थान पर आ गए जिससे रावण को उसके इच्छा के अनुसार पुत्र प्राप्त नहीं हो सका। इस बात से क्रोधित रावण ने शनिदेव को कैद कर लिया। खैर वह समय भी आया जब मंदोदरी ने एक बालक को जन्म दिया। बाल्मीकि रामायण में वर्णित कथा के अनुसार जब रावण और मंदोदरी का ज्येष्ठ पुत्र पैदा हुआ तो उसके रोने की आवाज़़ बिजली के कड़कने जैसी थी। इस वजह से रावण ने अपने बेटे का नाम मेघनाद रखा।
मेघनाद की सिद्धियां
कुछ बड़ा होने पर मेघनाद ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य से शिक्षा-दीक्षा ग्रहण किया। ऐसा माना जाता है की 12 वर्ष की आयु में ही मेघनाद ने अपनी कुलदेवी निकुंभला के मंदिर में अपने गुरु से दीक्षा लेकर कई सिद्धियां प्राप्त कर ली थी। परन्तु इतनी सिद्धियां प्राप्त करने बाद भी मेघनाद को संतुष्टि नहीं मिली और वह और शक्ति प्राप्त करने के लिए देवाधिदेव महादेव की घोर तपस्या करने लगा। कई वर्ष के कठिन तपस्या के बाद महादेव प्रसन्न हुए और मेघनाद के समक्ष प्रकट होकर बोले हे वत्स मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ और वरदानस्वरूप तुम्हे अपनी अमोघ शक्ति प्रदान करता हूँ। अपने सामने महादेव को देखकर मेघनाद ने उन्हें प्रणाम किया फिर महादेव ने उसे अपनी अमोघ शक्ति दी और वो वहां से अंतर्ध्यान हो गए।
मेघनाद को मिला वरदान
तत्पश्चात मेघनाद लंका की ओर चल पड़ा और उसने लंका पहुंचकर सबसे पहले ये बात अपने पिता रावण को बताई। उसने अपने पिता से कहा की पिता जी मेरी तपस्या सफल हुई ,मेरी भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने मुझे अपने अमोघ शस्त्र प्रदान किये हैं। मैं अब अपराजय हो गया हूँ। यह सुन रावण अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने मेघनाद की खूब प्रशंसा की। फिर मेघनाद ने रावण से कहा की पिताश्री मैं महादेव द्वारा दी हुई अमोघ शक्ति का इस्तेमाल करना चाहता हूँ और इसलिए मैं देवलोक पर आक्रमण करके देवराज इंद्र से युद्ध करना चाहता हूँ। अपने पुत्र के मुख से ऐसी वीरता वाली बातें सुनकर रावण जोर जोर से हंसने लगा और फिर अपने पुत्र को विजयी होने का आशीर्वाद देते हुए बोला जाओ पुत्र और साथ में हमारा पुष्पक विमान भी ले जाओ।
मेघनाद का स्वर्गलोक पर आक्रमण
तत्पश्चात अपने पिता से आशीर्वाद लेकर मेघनाद पुष्पक विमान में सवार होकर देवराज इंद्र से युद्ध करने देवलोक की ओर निकल पड़ा। फिर देवलोक पहुंचकर उसने सर्वप्रथम इंद्र की सभा पर आक्रमण किया जिससे इंद्र की सभा में चारों ओर धुंध छा गया। यह देखकर सभा में बैठे सभी देवतागण घबरा गए और वे सभी भी युद्ध के लिए तैयार हो गए। तभी मेघनाद देवराज इंद्र से बोला देवेंद्र मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ और यदि तुम कायर नहीं हो तो आकर मुझसे युद्ध करो।
कौन थी रावण और मेघनाद की कुलदेवी ?
तब देवराज इंद्र ने कहा-मेघनाद तुम्हारी युद्ध की ये अभिलाषा उचित नहीं है। ऐसा ना हो की तुम्हारी महत्वाकांक्षा के कारण तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारे अपनों का भी विनाश हो जाये। देवराज की बाते सुनकर मेघनाद क्रोधित हो उठा और उसने इंद्र से कहा इंद्र मैं तीनो लोकों को दिखा देना चाहता हूँ की मैं अजय हूँ। तुम भी अपने आपको अजय समझते हो ना,आज मैं तुम को पराजित करके त्रिलोक को अपनी शक्ति दिखाना चाहता हूँ। इतना कहकर मेघनाद ने देवराज इंद्र पर बाण चला दिया। जवाब में देवराज इंद्र ने भी बाणो से मेघनाद पर प्रहार किया परन्तु रास्ते में ही दोनों के बाण आपस में टकरा कर भस्म हो गए।
मेघनाद और देवराज का युद्ध
उसके बाद मेघनाद और देवराज में एक महाप्रलयकारी युद्ध शुरू हो गया और यह युद्ध काफी देर तक चला लेकिन किसी की भी पराजय होते नहीं दिख रही थी। यह देखकर देवराज इंद्र ने एक दिव्य बाण से मेघनाद पर प्रहार किया,वह बाण मेघनाद के नाभि में जाकर लगी जिसके बाद वह लड़खड़ा गया,फिर खुद को संभालते हुए क्रोध में आकर मेघनाद ने महादेव की दी हुई अमोघ शक्ति का आवाहन किया ,हे देवाधिदेव महादेव मैं आपकी दी हुई शक्ति का उपयोग करने जा रहा हूँ कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये और इतना कहकर उसने एक मन्त्र का उच्चारण प्रारम्भ किया। कुछ देर बाद महादेव की दी हुई अमोघ शक्ति मेघनाद के हाथ में प्रकट हुई। फिर उसने उसे प्रणाम करते हुए देवराज इंद्र पर छोड़ दिया।
महादेव की अमोघ शक्ति
उधर जब देवराज इंद्र को यह ज्ञात हुआ की मेघनाद ने उनपर महादेव की अमोघ शक्ति चलायी है तो वो दोनों हाथ जोड़कर खड़े हो गए,वह चाहते तो उस शक्ति का जवाब भी दे सकते थे परन्तु वो महादेव का अपमान नहीं करना चाहते थे। कुछ क्षण में वह शक्ति इंद्र को आकर लगी और वह अदृश्य रूप से बंध गए। उधर स्वर्गलोक से देवर्षि नारद सारी घटना को देख रहे थे। इंद्र को पराजित होता देख उन्होंने परमपिता ब्रह्मा जी से कहा,ब्रह्मदेव मेघनाद ने देवेंद्र को बंदी बना लिया है और वह उन्हें लंका ले जाना चाहता है। उधर मेघनाद इंद्र को लेकर लंका की ओर प्रस्थान करने लगा तभी युद्ध भूमि में ब्रह्मा जी प्रकट हुए और मेघनाद से बोले-रूक जाओ मेघनाद,वत्स मैं तुम्हारे सामर्थ्य और शक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूँ। तीनो लोकों पर अब तुम्हारा अधिपत्य हो चूका है। इंद्र पर विजय प्राप्त करके तुम इंद्रजीत हो गए हो। इसलिए आज से तुम इंद्रजीत के नाम से जाने जाओगे। अब तुम इंद्र को बंधन से मुक्त कर दो। उसके बदले तुम जो कुछ भी चाहोगे वो तुम्हे मिल जायेगा।
मेघनाद से बना इंद्रजीत
यह सुनकर मेघनाद ने दोनों हाथ जोड़ते हुए ब्रह्मा जी से कहा-ब्रह्मदेव यदि आप इंद्र को मुक्त कराना चाहते हैं तो मुझे पहले अमरत्व का वरदान दीजिये। तब ब्रह्मदेव ने कहा यह संभव नहीं है वत्स,पृथ्वी पर जन्म लेने वाला हर प्राणी की मृत्यु निश्चित है। इसलिए तुम कुछ और मांग लो ! फिर मेघनाद ने कहा तो हे ब्रह्मदेव मुझे यह वरदान दीजिये की जब भी मैं शत्रु का सामना करने जाऊं और अग्नि को मन्त्र के साथ आहुति दूँ तो अग्निकुंड से घोड़ों से जुता हुआ दिव्य रथ प्रकट हो। और जब तक मैं उस रथ पर बैठकर युद्ध करूँ मैं किसी के भी हाथों मारा ना जाऊं। यह सुनकर ब्रह्मा जी ने तथास्तु कहा और मेघनाद ने अपनी अमोघ शक्ति वापस ले ली। और देवराज इंद्र को बंधन से मुक्त कर दिया।