गजानन,लम्बोदर, विघ्नहर्ता, गणपति,एकदन्त आदि नामों से पुकारे जाने वाले गणेश जी को हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले पूजा जाता है। गणेश जी के बारे में अनेक रोचक बातें हैं जैसे गणेश जी को दूब घास अर्पित करना, गणेश और परशुराम का युद्ध, गणेश जी का अपनी माँ पार्वती के प्रति परम आज्ञाकारी होना,आदि।इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे कि क्यों गणेश जी ने देवाधिदेव महादेव को ही युद्ध के लिए ललकार दिया था। यह देख महादेव भयंकर क्रोधित हो उठे और गणेश जी पर अपने त्रिशूल से प्रहार कर दिया था। और फिर भगवान गणेश जी कैसे बने गजानन ?
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श्री गणेश जी का जन्म
किसी साधार व्यक्तित्व का साहस नहीं हो सकता कि शिव जी को युद्ध के लिए ललकारे। गणेश जी के ऐसा करने का बहुत बड़ा कारण था। दरअसल एक बार माँ पार्वती ने पाया कि शिवगण नंदी ने उनकी आज्ञापालन में त्रुटि की है। जिसके परिणामस्वरूप पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से एक पुतले का निर्माण किया और इसमें प्राण और पंचतत्व डालकर एक आकर्षक रूप प्रदान किया। यह पुतला एक सुन्दर बालक में परिवर्तित हो गया। पार्वती ने इस बालक से कहा कि तुम मेरे पुत्र हो। तुम गणेश के नाम से जाने जाओगे। माता ने कहा कि तुम केवल मेरी आज्ञा का पालन करोगे। उसी समय माता पावती ने एक गुफा में प्रवेश किया और गणेश से कहा कि वो उनके द्वारपाल बन अपने कर्तव्य का गणेश जी और भगवान पालन करें।और किसी को भी गुफा में उनकी आज्ञा के बिना प्रवेश न करने दें।
गणेश जी और भगवान शिव का युद्ध
माता के आदेश का पालन करते हुए पहरा देने लगे. कुछ समय पश्चात माता गुफा में स्नान करने लगीं तभी वहां महादेव शिव पधारे। गणेशजी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि मेरी माता का आदेश है कि कोई भी इस गुफा में प्रवेश नहीं कर सकता। जब तक उनकी आज्ञा नहीं होगी आप अंदर नहीं जा सकते। शिव जी को क्रोध आया और उन्होंने गणेशजी से कहा कि मूर्ख बालक तू जानता भी है मैं कौन हूँ, तू मुझे प्रवेश करने से नहीं रोक सकता। गणेश जी ने उत्तर दिया कि आप चाहे जो भी हों माता की आज्ञा के बिना मैं आपको प्रवेश करने की अनुमति नहीं दे सकता। शिव जी ने पुनः कहा कि जिन पार्वती का तू पहरेदार है मैं उनका पति शिव हूँ परन्तु कर्तव्य का पालन करते हुए गणेश जी अपनी बात पर अडिग रहे। तब शिव जी ने वापस जाकर अपने गणों नंदी, वीरभद्र आदि को उस बालक को समझाने के लिए भेजा। सभी ने जाकर बालक को समझाते हुए शिव जी की महिमा बताई परन्तु गणेश जी ने कहा कि मैं किसी भी प्रकार अपनी माता की बात का उल्लंघन नहीं होने दूंगा। जब शिवगणों ने बालक के हठ के विषय में जाकर शिव जी को बताया तब शिव जी ने क्रोधित होकर कहा कि उस बालक को सबक सिखाओ। सभी शिवगण अस्त्रों और शस्त्रों के साथ बालक के साथ युद्ध करने गए. जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपने विभिन्न रूपों को आदेश दिया कि गणेश की रक्षा करें और अपनी शक्तियां उनको प्रदान करें। शिवगणों और गणेश जी के मध्य भयंकर युद्ध हुआ, साथ ही कुछ देवता भी गणेश से युद्ध के लिए पधारे। परन्तु गणेश जी से परास्त होकर सबको वापस जाना पड़ा।
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गणेश जी बने गजानन
शिवगणों ने महादेव से जाकर कहा कि के प्रभु वो कोई साधारण बालक नहीं है, उसने अपनी शक्तियों से हम सभी को परास्त कर दिया है। शिव जी यह सोचकर दंग रह गए और भयंकर क्रोध से भर गए। तब शिव जी अपने गणों के साथ वहां पहुंचे और फिर से बालक को चेतावनी दी। इस पर गणेश ने शिव जी को ही युद्ध के लिए ललकार दिया। ऐसा दुष्साहस देख शिव जी ने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती को यह ज्ञात हुआ तो वो क्रोध से भर गयीं और उन्होंने अपनी सभी शक्तियों को प्रकट कर प्रलय मचाने का आदेश दिया। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कोलाहल मच गया। सभी ऋषिगण माता से प्रार्थना करने लगे तब माता ने कहा कि जब तक मेरा पुत्र जीवित नहीं हो जाता तब तक चारों ओर ऐसी ही तबाही मची रहेगी। यह सुन सभी देवताओं और ऋषियों ने शिव जी से विनती की कि वो गणेश को पुनर्जीवन दें अन्यथा सर्वनाश हो जायेगा। तब शिव जी ने अपने त्रिशूल से एक गज अर्थात हाथी का सिर काटा और गणेश के धड़ पर लगा दिया और इस प्रकार गणेश जी पुनः जीवित हुए और गजराज के नाम से प्रसिद्द हुए। इसके पश्चात शिव जी ने अपने पुत्र गणेश को आशीर्वाद और वरदान देते हुए कहा कि तुम सम्पूर्ण सृष्टि में सर्वप्रथम पूजे जाओगे और तुम्हे बुद्धि का देवता कहा जाएगा।