हिन्दू धर्म ग्रंथों में अनेक ऐसे अस्त्रों का उल्लेख मिलता है जिनमे प्रयोग की गयी तकनीक आज के वैज्ञानिकों की कल्पना से भी परे है। दोस्तों इस पोस्ट में आपको ब्रह्मास्त्र से भी कहीं अधिक शक्तिशाली अस्त्रों के विषय में बताएँगे।
ब्रह्मास्त्र
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अब यदि हम महाभारत काल के अस्त्रों की बात करें तो सबसे पहले ब्रह्मास्त्र का नाम आता है। इस अस्त्र में ऐसी खूबियां थीं जिनके सामने अच्छे अच्छे योद्धा घुटने टेक देते थे। इसकी विशेषता थी की जो भी इसे प्रयोग करता था वो लक्ष्य को बिना नष्ट किये ही ब्रह्मास्त्र को वापस ले सकता था। चूँकि ब्रह्मास्त्र परमाणु हथियार के समान था। महर्षि वेदव्यास ने लिखा है की जिस स्थान पर ब्रह्मास्त्र प्रयोग किया जाता था। उस स्थान पर बारह वर्ष तक जीव जंतु, पेड़ पौधे आदि की उत्पत्ति असंभव थी। महाभारत के जिन पात्रों को ब्रह्मास्त्र का ज्ञान था। उनके नाम क्रमशः भगवान परशुराम, गुरु द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह, गुरु कृपाचार्य, भगवान कृष्ण, अर्जुन, प्रद्युम्न, सात्यकि, और कर्ण है। यद्यपि कर्ण परशुराम द्वारा दिए श्राप के कारण ब्रह्मास्त्र का सम्पूर्ण ज्ञान महाभारत में उस क्षण भूल गया जब उसे उसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी।
महाभारत के समय में इससे भी विध्वंसक अस्त्र थे
ब्रह्मशीर्ष अस्त्र
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कहा जाता है की ब्रह्मास्त्र ब्रह्मा जी के एक सिर को प्रदर्शित करता है। जबकि ब्रह्मशीर्ष अस्त्र ब्रह्मा के चार सिरों को प्रदर्शित करता है। इसलिए इसे ब्रह्मास्त्र से चार गुना अधिक शक्तिशाली बताया गया है। ब्रह्मास्त्र की तुलना वर्तमान के परमाणु बम जबकि ब्रह्मशीर्ष की तुलना हाइड्रोजन बम से की जा सकती है। यदि कोई ब्रह्मशीर्ष अस्त्र को इसकी पूरा क्षमता का उपयोग करते हुए चला सकता तो यह सम्पूर्ण पृथ्वी को नष्ट कर सकने में सक्षम था। पुराणों में उल्लेखनीय है की जब ब्रह्मशीर्ष अस्त्र का प्रयोग किया जाता था तो आकाश से अग्निवर्षा होती थी। और वर्षों तक उस स्थान पर बारिश नहीं होती थी। महाभारत में पिता की मृत्यु के प्रतिशोध की ज्वाला में जल रहे अश्वत्थामा पांडवों के वंश का नाश कर देना चाहता था। वो उत्तरा के गर्भ में शिशु परीक्षित का वध करना चाहता था।
परन्तु उत्तरा को हानि पहुँचाने की उसकी कोई मंशा नहीं थी। माँ को बिना कुछ हुए गर्भ के शिशु को मारना अश्वत्थामा के लिए संभव था। इसलिए ब्रह्मशीर्ष अस्त्र का प्रयोग करके अर्जुन ने परीक्षित की रक्षा की। ब्रह्मशीर्ष अस्त्र न केवल असुरों और साधारण व्यक्तियों बल्कि देवताओं को भी नष्ट करने की क्षमता रखता था। ब्रह्मशीर्ष अस्त्र का ज्ञान गुरु द्रोण ने केवल अर्जुन और अश्वत्थामा को दिया था। अर्जुन को ब्रह्मशीर्ष को जागृत करने से वापस लेने तक का सम्पूर्ण ज्ञान था। जबकि अश्वत्थामा को गुरु द्रोणाचार्य ने केवल ब्रह्मशीर्ष को जागृत करने का ज्ञान दिया। जब महाभारत के अंत में अर्जुन और अश्वत्थामा एक दूसरे को नष्ट करने के लिए ब्रह्मशीर्ष को चलने वाले थे। तब नारद मुनि और वेद व्यास ने दोनों को रोका अन्यथा सम्पूर्ण संसार नष्ट हो जाता। शिव जी का पाशुपतास्त्र भी एक प्रकार का ब्रह्मशीर्ष अस्त्र है। इसे संकल्प, वाणी, दृष्टि और कमान चार प्रकार से चलाया जा सकता है।
ब्रह्मदण्ड अस्त्र
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ब्रह्मदण्ड महाभारत के समय का सबसे शक्तिशाली एवं खतरनाक अस्त्र बताया गया है। यह अस्त्र हर उस अस्त्र की शक्ति को क्षीण करने में समर्थ था जो इसके विरुद्ध चलाया जाता था। प्राचीन ब्रह्माण्ड विज्ञान शास्त्र के अनुसार ब्रह्मदण्ड अस्त्र 14 आकाशगंगाओं को विध्वंस करने में सक्षम था। यह इतना शक्तिशाली था की ब्रह्मास्त्र एवं ब्रह्मशीर्ष जैसे अस्त्रों को भी प्रभावहीन कर सकता था। इसका उल्लेख रामायण में भी मिलता है। जब महर्षि विश्वामित्र ने महर्षि वशिष्ट को नष्ट करने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया था। परन्तु वशिष्ट के ब्रह्मदण्ड अस्त्र ने ब्रह्मास्त्र को क्षीण करके उसे निगल लिया।
नारायणास्त्र
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नारायणास्त्र भगवान विष्णु का अस्त्र है जिसका सामना इतिहास का कोई अस्त्र नहीं कर सकता था. कहा जाता है की यदि नारायणास्त्र का एक बार प्रयोग हो जाता था तो इसे कोई भी शक्ति रोक पाने में असमर्थ थी. नारायणास्त्र को यदि कोई एक बार चला देता था तो यह किसी भी प्रकार से शत्रु का वध करके ही वापस आता था. नारायणास्त्र को शांत करने का एक ही तरीका था और वो था समर्पण. इस अस्त्र को केवल समर्पण का भाव ही शांत कर सकता था. इस अस्त्र का विरोध करने वाले का विनाश निश्चित था. इसलिए जब महाभारत में अश्वत्थामा ने नारायणास्त्र चलाया था तब भगवान कृष्ण ने सबको अपने-अपने अस्त्र फेंकने का आदेश दिया क्यूंकि यदि किसी के हाथ में धनुष अथवा बाण रह जाता तो उसका सर्वनाश निश्चित था.