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गीता के इन वचनो में छिपा है सभी समस्याओं का समाधान

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जीवन में कई बार ऐसा हो जाता है की हमें अपनी समस्याओं का समाधान नहीं मिलता।फिर विपत्ति के समय हम बहुत परेशान हो जाते हैं। कई लोग तो गुस्से में अपना आपा खो देते हैं या फिर अपनी समस्याओं से विचलित होकर भाग खड़े होते हैं। ऐसे में गीता में लिखे गए यह उपदेश हमारी सारी समस्याओं का चुटिकयों में हल कर देते हैं। और हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं साथ ही सफल जीवन की प्रेरणा देते हैं। भले ही यह उपदेश आज से लगभग 5 हजार साल पहले दिया गया हो परन्तु गीता के ये उपदेश आज भी मानव जीवन में उतने ही प्रासंगिक हैं जितना की अर्जुन के लिए धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में था। यदि आज मानव इस ज्ञान या उपदेश को अपने जीवन में समाहित कर ले तो ना तो उसे किसी भी  तरह के दुखों का सामना करना पड़ेगा और ना ही उसके जीवन में कभी निराशा आएगी। तो पाठकों आइये जानते हैं गीता के इन वचनो में छिपा है सभी समस्याओं का समाधान।

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मानव शरीर नश्वर है और आत्मा अनश्वर

श्री कृष्ण के अनुसार मनुष्य का शरीर वस्त्र के टुकड़े के समान है। अर्थात जिस तरह हम पुराने हो जाने पर कपडे बदलते हैं ठीक उसी तरह आत्मा हर जन्म में  शरीर बदलती है। अर्थात मानव शरीर, आत्मा का अस्थायी वस्त्र है। जिसे हर जन्म में बदला जाता है। इसका आशय यह है कि हमें शरीर से नहीं उसकी आत्मा से व्यक्ति की पहचान करनी चाहिए। जो लोग इंसानी शरीर से आर्कषित रहते हैं या फिर मनुष्य जीवन को ही सत्य मानते हैं,,ऐसे लोगों के लिए गीता का यह उपदेश बड़ी सीख देने वाला है। ये हमें सिखाता है की हमारा उद्देश्य अस्थायी शरीर की तृप्ति नहीं अपितु आत्मा की मोक्ष प्राप्ति है।

मृत्यु ही है एक मात्र सत्य

कुरुक्षेत्र के मैदान में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं जन्म और मरण जीवन का एक चक्र है। जिसे जान लेना बेहद आवश्यक है, क्योंकि मनुष्य के जीवन का मात्र एक ही सत्य है और वो है मृत्यु। अर्थात जिसने इस दुनिया में जन्म लिया है उसे एक दिन इस संसार को छोड़ कर जाना ही है और यही इस दुनिया का अटल सत्य है। फिर भी इस बात से नकारा नहीं जा सकता कि हर इंसान अपनी मौत से भयभीत रहता है। अर्थात मनुष्य के जीवन की अटल सच्चाई से भयभीत होना, इंसान की वर्तमान खुशियों को भी खराब कर देता है। इसलिए किसी भी तरह का डर नहीं रखना चाहिए।

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क्रोध से इंसानो का नाश हो जाता है !

भगवान श्री कृष्ण में गीता में कहा है कि ‘क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि का विनाश होता है। वहीं जब बुद्धि काम नहीं करती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और व्यक्ति का नाश हो जाता है। इसलिए हम सभी को अपने गुस्से पर काबू करना चाहिए, क्योंकि क्रोध भ्रम भी पैदा करता है। इंसान गुस्से में कई बार ऐसे काम करते हैं जिससे उन्हें काफी हानि पहुंचती है।वहीं क्रोध में इंसान कई गलत कदम भी उठा लेता है। इतना ही नहीं जब क्रोध की भावना इंसान के मन में पैदा होती है तो उसका  मस्तिष्क भी सही और गलत के बीच अंतर करना छोड़ देता है, इसलिए इंसान को हमेशा शांत रहना चाहिए। क्योंकि गुस्से में लिया गया फैसला खुद इंसान को  ही सबसे अधिक क्षति पहुंचाता है।

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अपने कर्म को नहीं छोड़ सकता मनुष्य

श्री कृष्ण ने गीता सार में बताया है कि कोई भी इंसान अपने कर्म को नहीं छोड़ सकता है। र्थात् जो लोग कर्म में लगे रहते हैं उन्हें उस मार्ग से हटाना ठीक नहीं चाहिए क्योंकि वे ज्ञानवादी बनने के लालच में अगर उनका कर्म छूट जाता है तो वे दोनों तरफ से भटक जाएंगे।  मनुष्य न तो कर्मों का आरंभ किए बिना निष्कर्मता को यानी योगनिष्ठा को प्राप्त होता है और न कर्मों के केवल त्यागमात्र से सिद्धि यानी सांख्यनिष्ठा को ही प्राप्त होता है। जो व्यक्ति कर्म से बचना चाहता है वह ऊपर से तो कर्म छोड़ देता है लेकिन मन ही मन उसमे डूबा रहता है। अर्थात जिस तरह व्यक्ति का स्वभाव होता है वह उसी के अनूरुप अपने कर्म करता है।

मन पर काबू में रखें

यह उपदेश उन लोगों के लिए है जो लोग अपने मन को काबू में नहीं रखते। ऐसे लोगों का मन इधऱ-उधर भटकता रहता है जो वह शत्रु के समान काम करता है। मन, व्यक्ति के मस्तिक पर भी गहरा प्रभाव डालता है। मन के सही रहने पर ही मनुष्य का मस्तिक भी सही तरीके से काम करता है। इसलिए अपने मन को हमेशा काबू में रखें।

 देखने का नजरिया

गीता सार में मनुष्य को देखने के नजरिए पर भी संदेश दिया गया है, इसमें लिखा गया है जो ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, उसी का नजरिया सही है।और जो अज्ञानी पुरुष होता है, उसे ज्ञान नहीं होने की वजह से वह हर किसी चीज को गलत  नजरिए से देखता है।

खुद की पहचान करें

गीता सार में यह भी उपदेश दिया गया है कि मनुष्य को पहले खुद का आकलन करना चाहिए और खुद की क्षमता को जानना चाहिए क्योंकि मनुष्य को अपने ‘आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को अलग कर देना चाहिए। जब तक मनुष्य खुद के बारे में नहीं जानेगा तब तक उसका उद्धार नहीं हो सकता है।

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कर्म करें और फल की इच्छा ना करें

जो लोग कर्म नहीं करते और पहले से ही परिणाम के बारे में सोचते हैं ऐसे लोगों के लिए गीता सार का यह उपदेश बड़ी सीख देने वाला है। इसमें श्री कृष्ण ने कहा है कि इंसान को अपने अच्छे कर्म करते रहना चाहिए और यह नहीं सोचना चाहिए कि इसका क्या परिणाम होगा क्योंकि कर्म का फल हर इंसान को मिलता है। इसलिए इंसान को इस तरह की चिंता को अपने मन में जगह नहीं देनी चाहिए कि उसके कर्म का फल क्या होगा या फिर किसी काम को करने के बाद वह खुश रहेंगे या नहीं।अर्थात कर्म करने के दौरान इंसान को इसके परिणाम के बारे में बिल्कुल भी चिंता नहीं करना चाहिए और किसी भी काम को चिंता मुक्त होकर शुरु करना चाहिए।

दूसरों से पहले खुद पर विश्वास करें

श्री मदभगवद गीता में श्री कृष्ण ने उपदेश दिया है कि हर मनुष्य को खुद पर पूरा भरोसा रखना चाहिए क्योंकि जो लोग खुद पर भरोसा करते हैं वह निश्चय ही सफलता हासिल करते हैं। वहीं इंसान जैसा विश्वास करता है वह वैसा ही बन जाता है।

अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगातर प्रयास करें

गीता सार के इस उपदेश को अगर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में पालन करे तो निश्चय ही वह एक सफल व्यक्ति बन सकता है। जो लोग पूरे विश्वास के साथ अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास करते हैं।वह निश्चय ही अपने लक्ष्य को पा लेते हैं, लेकिन मनुष्य को अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगातार चिंतन करते रहना चाहिए।

पहले खुद का काम करें

श्री मदभगवत गीता में श्री कृष्ण ने यह उपदेश दिया है कि अपने काम को पहले प्राथमिकता दें और पहले अपने काम को पूरा करने की कोशिश करें तभी दूसरे का काम करें क्योंकि जो लोग पहले अपने काम को नहीं करते और दूसरें का काम करते रहते हैं। वे लोग अक्सर परेशान रहते हैं।

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अति सर्वत्र वर्ज्यते

गीता सार में श्री कृष्ण ने यह बात कही है कि इंसान के लिए  किसी भी तरह की अधिकता घातक साबित हो सकती है। जिस तरह  संबंधों में कड़वाहट हो या फिर मधुरता, खुशी हो या गम, हमें कभी भी “अति” नहीं करनी चाहिए।जीवन में संतुलन बनाए रखना बहुत जरूरी है। जब तक मनुष्य के जीवन में संतुलन नहीं रहेगा वह सुख से अपना जीवन व्यतीत नहीं कर सकेगा अर्थात मनुष्य को जरूरत से ज्यादा कोई भी चीज करने से बचना चाहिए और अपनी जिंदगी में संतुलन बनाकर रखना चाहिए।

संदेह की आदत इंसान के दुख का कारण बनती है

जिन लोगों में शक या संदेह की आदत होती है या फिर जो लोग जरूरत से ज्यादा शक करते हैं। ऐसे लोगों के लिए श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि पूर्ण सत्य की खोज या फिर संदेह की आदत इंसान के दुख का कारण बनती है।भगवान श्री कृष्ण के द्धारा श्री मदभगवतगीता में जो भी उपदेश दिए हैं अगर इन उपदेशों को लोग अपने जीवन में उतार लें तो वे निश्चत ही अपने जीवन में सफल हो सकते हैं। गीता सार के ये उपदेश वाकई एक सफल जीवन के निर्माण करने में एक अहम भूमिका निभाते हैं।

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