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गांधारी ने कैसे दिया 100 पुत्रों को जन्म 100 कौरवों के जन्म की अद्भुत कहानी

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कौरवों के जन्म की अद्भुत कहानी

एक सौ कौरव का जन्म

महाभारत से जुडी कई ऐसी कथा सुनने को मिलती है जो आपकी और हमारी समझ से परे हैं। ऐसी ही एक कथा सौ कौरव के जन्म से सम्बंधित है। आपको ये सुनकर तो आश्चर्य होता होगा की आखिरकार गांधारी ने एक साथ सौ कौरवों को कैसे जन्म दिया था।  इससे जुडी सच्चाई कम ही लोगो को पता होगी। लेकिन आज आपको इस रहस्य के पीछे की सच्चाई पता चल जाएगी।

कौरवों के जन्म का रहस्य

आपको बता दे की गांधारी के गर्भ से सौ कौरवों का जन्म कोई दैवीय चमत्कार नहीं बल्कि एक ऐसी घटना है जो भारत के प्राचीन रहस्यमयी विज्ञान का उदाहरण है। गांधारी गंधार राज्य के राजा सुबल की सुपुत्री थी। समय बीता और गांधारी का विवाह हस्तिनापुर के राजकुमार धृतराष्ट्र के साथ हुआ। चूँकि ध्रतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे इसलिए गांधारी ने भी आजीवन आंखों पे पट्टी  बाँधने का फैसला किया। और आँख होते हुए भी नेत्रहीन बनके रहने लगी।

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कौरवों का जन्म

शादी के कुछ वर्ष बाद गांधारी ने सौ पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया। कुरुवंश के होने के कारण  गांधारी और धृतराष्ट्र के पुत्रों को कौरव नाम से जाना गया। सौ कौरवों का जन्म इतिहास की सबसे विचित्र घटना है।

गांधारी को बचपन से ही धार्मिक कार्यों में बेहद रुचि थी। आपको बतादें की गांधारी भगवान शिव की अनयन भक्त माना जाता है। कहते हैं की महर्षि वेदव्यास एक बार हस्तिनापुर आये और गांधारी ने उनकी खूब सेवा की। गांधारी की लगन और आस्था को देखकर महिर्ष वेदव्यास ने गांधारी को सौ पुत्र होने का वरदान दिया। महिर्षि वेदव्यास के आशीर्वाद के अनुसार गांधारी गर्भवती हुई। गर्भधारण कर लेने के पश्चात भी दो वर्ष व्यतीत हो गए। किंतु गांधारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोधवश गांधारी ने अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया जिससे उसका गर्भ गिर गया।

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उधर वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे उसी समय गांधारी के पास आकर बोले गांधारी तूने बहुत गलत किया।  मेरा दिया हुआ वर कभी खाली नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही सौ कुंड तैयार करवाओ और उनमें घी भरवा दो। तभी गांधारी ने एक पुत्र की भी इच्छा जताई। वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे उस पिण्ड के एक सौ एक टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए कुंडों में रखवा दिया। उसके बाद उन कुंडों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर वेदव्यास अपने आश्रम चले गए।

दो वर्ष के बाद हुआ कौरवों का जन्म

दो वर्ष पूरे हो गए और फिर गांधारी ने सारे कुंड खोले। सबसे पहले कुंड से दुर्योधन का जन्म हुआ। बांकी कुंडों से 99 पुत्र और एक पुत्री का जन्म हुआ। गांधारी के पुत्री का नाम दुशाला था ऐसा कहा जाता है कि जन्म लेने के बाद ही दुर्योधन गधे की तरह रेकने लगा। जिसे देखकर पंडितों और ज्योतिषियों ने कहा कि यह बच्चा कुल का नाश कर देगा। और ज्योतिषियों ने धृतराष्ट्र से दुर्योधन का त्याग करने के लिए कहा। लेकिन पुत्रमोह से विवश धृतराष्ट्र ऐसा नहीं कर सके।

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