सती अनुसूया पतिव्रत धर्म के लिए जानी जाती हैं। देवी अनुसूया त्रेता युग से आज तक सभी स्त्रियों की आदर्श पात्र हैं। रामायण में वर्णित एक कथा के अनुसार जब वनवास के दौरान एक दिन भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण जी चित्रकूट महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे। तब यहीं पर देवी अनुसूया ने सीता जी को पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी। इस लेख में हम आपको बताएँगे की अनुसूया ने सीता जी को पतिधर्म से सम्बंधित क्या बातें बतायीं जो आज भी प्रत्येक स्त्री पर लागू होती हैं।
कौन थी देवी अनुसूया
परम पिता ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक महर्षि अत्रि थे। अत्रि परम तपस्वी और महाज्ञानी थे। देवी अनुसूया महर्षि अत्रि की ही पत्नी थीं। अपने सेवा भाव और समर्पण से उन्होंने अत्रि मुनि का ह्रदय जीत लिया था। अनुसूया प्रजापति दक्ष की चौबीस पुत्रियों में से एक थीं। एक बार उन्होंने अपने भक्ति भाव और तपस्या से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को प्रसन्न किया था। जब लक्ष्मी जी, सरस्वती जी और सती जी को अपने पतिव्रत होने पर अभिमान था। तब इन तीनो देवियों के अभिमान को नष्ट करने के कि लिए नारद जी ने एक लीला रची। उन्होंने तीनो देवियों से कहा कि मैं कुछ समय पहले चित्रकूट महर्षि अत्रि कि आश्रम पहुंचा और वहां देवी अनुसूया के पातिव्रत्य को देखकर अचंभित हूँ। उनके जैसी पतिव्रता सम्पूर्ण सृष्टि में कोई नहीं है। यह सुन तीनो देवियां आश्चर्यचकित हुईं और उन्हें अनुसूया से ईर्ष्या होने लगी। तीनो देवियों ने त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने भेजा।
अनुसूया की परीक्षा
तीनो देव मुनियों कि वेश में चित्रकूट महर्षि अत्रि कि आश्रम पहुंचे। ऋषि कि आश्रम में न होने कि कारण अनुसूया उनके स्वागत सत्कार के लिए आगे बढ़ीं। परन्तु त्रिदेव ने अस्वीकार कर दिया। तब देवी ने पूछा कि हे मुनिवर मुझसे ऐसा कौन सा अपराध हो गया है कि आप मेरे सत्कार को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। तब मुनियों ने कहा कि यदि आप निर्वस्त्र होकर हमारा सत्कार करें तभी हम आपका आतिथ्य स्वीकार कर सकते हैं। अनुसूया यह सुनकर संकट में पड़ गयीं और उन्होंने कहा कि मैं निर्वस्त्र होकर आपका सत्कार करुँगी और यदि मैं वास्तव में एक सच्ची पतिव्रता हूँ और मैंने अपने जीवन में कभी भी गलत भाव से अपने पति के अतिरिक्त पर पुरुष कि विषय में विचार नहीं किया हो तो आप तीनों 6 माह कि शिशु बन जाएँ।
त्रिदेव का बाल स्वरुप
भगवान् अपने भक्तों की परीक्षा लेने और उनका यश बढ़ाने के लिए विभिन्न लीलाएं करते हैं। यह भी उनकी लीला ही थी जिसके परिणामस्वरूप त्रिदेव तीन माह कि शिशुओं में परिवर्तित हो गए और अनुसूया ने तीनों को स्तनपान कराया। तब लक्ष्मी, सती और सरस्वती तीनों देवियां चित्रकूट पहुंचीं और अनुसूया का गुणगान करते हुए उनकी बहुत प्रशंसा की। उन्होंने कहा आप हमे क्षमा करें और हमारे पतियों को उनका रूप प्रदान करें। अपना परिचय देते हुए तीन देवियों ने बताया की मुनियों कि वेश में स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। यह सुन अनुसूया का मन द्रवित हो उठा. तब अनुसूया ने शिशुओं पर जल प्रोक्षण किया और तीनों अपने अपने रूपों में प्रकट हुए। इस प्रकार अनुसूया ने अपने सतीत्व की अग्नि परीक्षा दी।
अनुसुइया ने सीता जी से क्या कहा ?
वनवास के दौरान अनुसूया ने सीता जी को शिक्षा दी कि एक आदर्श पत्नी का अपने पति के लिए कैसा व्यवहार होना चाहिए और पत्नी को गृहस्थ जीवन किस प्रकार व्यतीत करना चाहिए। तो आइये जानते हैं अनुसुइया ने सीता जी से क्या कहा ?
1.सीता माता और अनुसूया का संवाद
2.भगवन राम के १४ वर्ष के वनवास के दौरान अनुसूया ने सीता जी को शिक्षा दी कि एक आदर्श पत्नी का अपने पति के लिए कैसा व्यवहार होना चाहिए। पत्नी को गृहस्थ जीवन किस प्रकार व्यतीत करना चाहिए। तो आइये जानते हैं अनुसुइया ने सीता जी से क्या कहा।
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3.वनवास के समय एक समय ऐसा आया जब सीता जी की साड़ी फट गयी और वो जानती थीं कि राम जी नहीं जा सकते तब उन्होंने धैर्य रखकर उसी फटी साड़ी को धारण किया परन्तु किसी और को वस्त्र लाने के लिए नहीं कहा। जब सीता जी चित्रकूट महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचीं तब देवी अनुसुइया ने सीता जी को वस्त्र धारण करने के लिए दिए और साथ ही सीता के पति के प्रति भाव को लेकर उनकी प्रशंसा की। इसके पश्चात अनुसुइया सीता जी से कहती हैं कि नारी का व्रत और धर्म एक ही है और वो है मन से पति की सेवा करना।
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4.पति अपनी पत्नी को जिस रूप में रखे उसे वैसे ही रहना चाहिए।
5.नारी इस संसार में अपनी तपस्या और बलिदान के कारन ही पूजनीय है परन्तु यदि उसके मन में स्वार्थ का भाव है, पति को लेकर मन में गलत विचार हैं या परपुरुष में किसी भी प्रकार की कोई रूचि है तो वो पूजनीय नहीं है।
6.नारी का जीवन त्याग है. माता पिता भाई बहिन ये सभी सम्बन्ध एक नारी के लिए मित्रता के सम्बन्ध हैं। चाहे पति वृद्ध हो, मानसिक रूप से कमज़ोर हो, रोगग्रस्त हो, मुर्ख हो, धनहीन हो, अँधा हो, क्रोधी हो, दीन हो, या बहरा हो, एक नारी को किसी भी स्थिति में पति का सम्मान करना चाहिए। यदि ऐसे पति का भी अपमान किया जाता है तो मृत्यु कि पश्चात याम की यातना सहन करनी पड़ती है।
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7.एक स्त्री को अपने पति के घर मन वचन कर्म से सेवा के भाव के साथ ही जाना चाहिए. किसी भी प्रकार का द्वेष अथवा भेद भाव नहीं रखना चाहिए।
8.स्त्री का दायित्व है अपने परिवार को जोड़कर रखना. स्त्री के मन में सदैव यह भाव होना चाहिए कि वो जिस जगह भी जाए, भाग्य में जितना सुख और दुःख लिखा है वो सहन करना ही पड़ेगा. इसलिए किसी को भी दोष नहीं देना चाहिए. कष्टों को भोगने से ही कष्ट कम होते हैं।
9.अनुसुइया जी कहती हैं कि जानकी, मैं यह केवल तुम्हारे लिए नहीं अपितु संसार के कल्याण के लिए कह रही हूँ. जिस घर में स्त्री प्रसन्न है उस घर में समृद्धि का आगमन निश्चित है परन्तु जहाँ स्त्री प्रसन्न नहीं है वहां चाहे कितनी भी संपत्ति क्यों न हो, घर में समृद्धि का वास नहीं होता. इसलिए यदि पत्नी पात्रिव्रत का पालन कर रही है तो पति का भी कर्तव्य है पत्नी को सम्मान देना और उसे प्रसन्न रखना।
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