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मृत्यु के बाद जीवात्मा का क्या होता है? र्शकों जैसा की हम सभी जानते हैं कि कुरुक्षेत्र के मैदान में जब महाभारत का युद्ध शुरू होने वाला था उस समय अर्जुन का अंतर्मन व्यथित था और वो अपने और पराये के बिच भेद नहीं समझ पा रहे थे और सामने खड़ी सेना के विरुद्ध शस्त्र उठाने से घबरा रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन की व्यथा को दूर करने के लिए गीता जैसा अनमोल ज्ञान दिया और उसी दौरान श्री कृष्ण ने बताया कि मृत्यु के बात मनुष्य का क्या होता है जिसका वर्णन गीता के अलग अलग अध्यायों में किया गया है।
आज की इस वीडियो में हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि भगवान कृष्ण के अनुसार मृत्यु के बाद जीवात्मा का क्या होता है ?
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गीता में यह बताया गया है की जब श्री कृष्ण अर्जुन को यह अनमोल ज्ञान दे रहे थे उसी दौरान अर्जुन ने पुछा की हे केशव कृपया कर यह बताइये कि मृत्यु के बाद मनुष्य का क्या होता है। तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि हे पार्थ इस सृष्टि के प्राणियों को मृत्यु के पश्चात् अपने-अपने कर्मों के अनुसार पहले तो उन्हें दूसरे लोक यानि की परलोक में जाकर कुछ समय व्यतीत करना पड़ता है जिस दौरान वो पिछले जन्मों में किये हुए पुण्य कर्मों अथवा पाप कर्म का फल भोगते हैं। फिर जब उनके पुण्यों और पापों का हिसाब सुख दुःख को भोगने के बाद खत्म हो जाता है तब वो इस मृत्युलोक में फिर से जन्म लेते हैं। इसलिए इस मृत्युलोक को कर्मलोक भी कहा जाता है। क्योंकि मृत्युलोक ही वह लोक है जहाँ प्राणी को वो कर्म करने का अधिकार है जिससे उसका प्रारब्ध निश्चित होता है।
यह सुनकर अर्जुन फिर पूछते हैं मृत्यु के बाद जीवात्मा का क्या होता है, वासुदेव इस धरती को मृत्युलोक क्यों कहा जाता है? तब श्री कृष्ण बताते हैं की हे अर्जुन, तिनोलकों में धरतीलोक ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ प्राणी जन्म और मृत्यु की पीड़ा सहते हैं। अर्थात धरती के आलावा और ऐसा कोई लोक नहीं जहाँ किसी भी प्राणी का जन्म या मृत्यु होता हो। क्योंकि मैंने तुम्हें पहले भी बताया था कि मृत्यु केवल शरीर की होती है, आत्मा की नहीं। आत्मा न तो जन्म लेती है और न मरती है। इसके बाद अर्जुन फिर पूछते हैं कि हे केशव आपने पहले यह कहा था कि आत्मा को सुख-दुःख नहीं भोगना पड़ता है परन्तु अब यह कह रहे हैं कि मृत्यु के पश्चात आत्मा को सुख भोगने के लिए स्वर्ग आदि में अथवा दुःख भोगने के लिए नरक आदि में जाना पड़ता है। इसका तो अर्थ यह हुआ कि आत्मा को केवल पृथ्वी पर ही सुख दुःख नहीं भोगने पड़ते बल्कि स्वर्ग अथवा नरक में भी आत्मा को सुख या दुःख भोगने पड़ते हैं।
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अर्जुन के मुख से ऐसी बातें सुनकर भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए कहते हैं हे कौन्तेय ऐसा मैंने कब कहा,मैं तो तुम्हे पहले ही बता दिया है कि आत्मा को कहीं, किसी भी स्थान पर या किसी काल में भी सुख दुःख छू नहीं सकते। क्योंकि आत्मा तो मुझ अविनाशी परमेश्वर का ही दिव्य रूप है। क्योंकि हे अर्जुन! परमेश्वर अर्थात मैं माया के आधीन नहीं, बल्कि माया मेरे आधीन है और सुख दुःख तो माया की रचना है। और यही कारण है कि जब माया मुझे अपने घेरे में नहीं ले सकती फिर तुम ही बताओ की ऐसे में माया के रचे हुए सुख और दुःख मुझे कैसे छू सकते हैं। तुम्हे ये भी बता दूँ कि सुख दुःख तो केवल शरीर के भोग हैं, आत्मा के नहीं।
उसके बाद अर्जुन कहते है की हे नारायण मैंने मान लिया कि सुख दुःख केवल शरीर के भोग हैं, आत्मा के नहीं परन्तु जो शरीर उनको भोगता है उसकी तो मत्य हो जाती है। वो शरीर तो आगे नहीं जाता, फिर स्वर्ग अथवा नरक में सुख दुःख को भोगने कौन जाता है?
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तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे पाण्डुपुत्र अर्जुन इसके लिए तुम्हे सबसे पहले यह सझना होगा कि जीवात्मा है क्या ? हे पार्थ जब किसी की मृत्यु होती है तो वास्तव में कपड़ा रुपी जो अस्थूल शरीर है केवल उसी की मृत्यु होती है और शरीर के अंदर जो सूक्ष्म शरीर है वो नहीं मरता। वो सूक्ष्म शरीर आत्मा के प्रकाश को अपने साथ लिए मृत्युलोक से निकलकर दूसरे लोकों में चला जाता है। उसी सूक्ष्म शरीर को जीवात्मा कहते हैं। यह सुन अर्जुन श्री कृष्ण को बीच में टोकते हुए पूछते हैं की हे माधव इसका अर्थ तो ये हुआ की जब आत्मा एक शरीर को छोड़कर जाती है तो साथ में जीवात्मा को भी ले जाती है? तब श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए अर्जुन से कहते हैं की हे सखा तुम जीवात्मा को जितना सरल समझते हो उसकी व्याख्या उतनी सरल नहीं है इसलिए अब मैं जो कहने जा रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो। हे अर्जुन जैसे किसी भी तालाब से जल की अपने आप उससे बाहर नहीं जाती हाँ अगर कोई किसी बर्तन में भरकर उस तालाब के जल को ले जाता है तो वह अलग दिखाई देता है उसी प्रकार सूक्ष्म शरीर रूपी जीवात्मा उस आत्म ज्योति के टुकडे को अपने अंदर रखकर अपने साथ ले जाता है। यही जीवात्मा की यात्रा है जो एक शरीर से दूसरे शरीर में, एक योनि से दूसरी योनि में विचरती रहती है।
इसके आलावा हे अर्जुन! जीवात्मा जब किसी शरीर को छोड़कर जाती है तो उसके साथ उसके पिछले शरीर की वृत्तियाँ, उसके संस्कार और उसके भले कर्मों का लेखा जोखा अर्थात उसकी प्रारब्ध सूक्ष्म रूप में साथ जाती है। भगवान श्रीकृष्ण के मुख से ऐसी बातें सुनकर अर्जुन को कुछ संतुष्टि मिलती है परन्तु उनका चित फिर भी शांत नहीं होता है और वे पुनः श्री कृष्ण से पूछते हैं कि हे मधुसूदन लेकिन मृत्यु के बाद जीवात्मा का क्या होता है तब श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि हे धनञ्जय मानव शरीर त्यागने के बाद मनुष्य को अपने प्रारब्ध अनुसार अपने पापों और पुण्यों को भोगना पड़ता है। इसके लिए भोग योनियाँ बनी हैं जो दो प्रकार की हैं- उच्च योनियाँ और नीच योनियाँ। जो मनुष्य जीवित रहते पुण्य कर्म करता है उसकी जीवात्मा उच्च योनियों में स्वर्ग में रहकर अपने पुण्य भोगता है और पाप करने वाले मनुष्यों की जीवात्मा नीच योनियों में यानि नरक में रहकर अपने पापों को भोगता है।
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कभी ऐसा भी होता है कि कई प्राणी स्वर्ग नरक का सुख दुःख पृथ्वी लोक पर ही भोग लेते हैं। यह सुनकर अर्जुन आश्चर्यचकित हो जाता है और उनसे पूछते हैं कि हे नारायण परन्तु कोई भी मनुष्य पृथ्वी लोक पर कैसे स्वर्ग या नरक का सुख दुःख भोग सकता है। तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की हे अर्जुन जैसे कोई मनुष्य सभी तरह से सम्पान है अर्थ ऐसा मनुष्य जिसकी सेवा करने के लिए कई-दास-दासियां हर समय कड़ी रहती है परन्तु एक दिन अचानक उसका जवान बेटा किसी कारणवश मृत्यु को प्राप्त हो जाता है जिसे वह सबसे अधिक प्रेम करता था ऐसे में उस मनुष्य पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है और संसार की हर वस्तु उस मनुष्य के पास होने के बावजूद भी वह मरते दम तक दुखी रहता है। अर्थात हे पार्थ जब तक उस मनुष्य का जवान बेटा जीवित था तब तक उस मनुष्य ने जो सुख भोगे वो स्वर्ग के सुखों की भांति थे और पुत्र की मृत्यु के बाद उसने जो दुःख भोगे वो नरक के दुखों से बढ़कर थे और इसी तरह मनुष्य को संसार में रहकर भी अपने पिछले जन्मों के सुख दुःख को भोगना पड़ता है।
उधर अर्जुन भगवान श्री कृष्ण की बातें सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाता है तब उसे श्री कृष्ण कहते हैं की हे अर्जुन अगर अब भी तुम्हारे मन में मृत्यु के बारे में कोई संशय रह गया हो तो तुम मुझसे पूछ सकते हो। तब अर्जुन भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम करते हुए पूछते हैं कि हे भगवन अब यह बताइये कि मनुष्य अपने पुण्यों को किन-किन योनियों में और कहाँ भोगता है? तब कृष्ण बताते हैं की हे कौन्तेय पुण्यवान मनुष्य अपने पुण्यों के द्वारा किन्नर, गन्धर्व अथवा देवताओं की योनियाँ धारण करके स्वर्ग लोक में तब तक रहता है जब तक उसके पुण्य क्षीण नहीं हो जाते। अर्थात ये कि प्राणी के हिसाब में जितने पुण्य कर्म होते हैं उतनी ही देर तक उसे स्वर्ग में रखा जाता है। और जब पुण्यों के फल की अवधि समाप्त हो जाती है तो उसे फिर पृथ्वीलोक में वापिस आना पड़ता है और मृत्युलोक में पुनर्जन्म धारण करना पड़ता है।
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यह सुन अर्जुन हैं कि परन्तु स्वर्ग लोक में मनुष्य के पुण्य क्यों समाप्त हो जाते हैं? वहाँ जब मृत्यु के बाद जीवात्मा का क्या होता है? जीवात्मा देव योनि में होता है तब वो अवश्य ही अच्छे कर्म करता होगा, उसे इन अच्छे कर्मों का पुण्य तो प्राप्त होता होगा? यह सुन श्री कृष्ण के चहरे पर एक बार फिर मुस्कान आ जाता है और वह कहते हैं कि नहीं पार्थ उच्च योनि में देवता बनकर जो मौश्य अच्छे कर्म करता है या नीच योनि में जाकर प्राणी जो क्रूर कर्म करता है, उन्हें उन कर्मों का उसे कोई फल नहीं मिलता। क्योंकि वो सब भोग योनियाँ है। वहाँ प्राणी केवल अपने अच्छे बुरे कर्मों का फल भोगता है। इन योनियों में किये हुए कर्मों का पुण्य अथवा पाप उसे नहीं लगता। हे पार्थ केवल मनुष्य की योनि में ही किये हुए कर्मों का पाप या पुण्य होता है क्योंकि यही एक कर्म योनि है।
यह सुनकर अर्जुन विस्मित हो जाते हैं और भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं की हे माधव क्या आप ये कहाँ चाह रहे हैं कि यदि कोई पशु किसी की हत्या कर देता है तो उसे कोई पाप नहीं लगता और यदि मनुष्य किसी की हत्या कर दे तो उसे उस पाप का दंड भोगना पड़ता है परन्तु ऐसा अंतर क्यों है ? तब कृष्ण कहते हैं हे धनञ्जय ऐस इसलिए है कि धरतीलोक पर समस्त प्राणियों में केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो विवेकशील है और तुम ही बताओ मनुष्य के सिवा दूसरा ऐसा कोई और प्राणी है जो अच्छे बुरे की पहचान कर सकता है। इसी कारण यदि कोई हत्या करता है तो उसे उसका पाप नहीं लगता। और यही कारण है की पाप पुण्य का लेखा जोखा अर्थात प्रारब्ध केवल मनुष्य का बनता है। इसलिए जब मनुष्य अपने पाप और पुण्य भोग लेता है तो उसे फिर मनुष्य की योनि में भेज दिया जाता है। और मनुष्य की योनि प्राप्त होने पर फिर कर्म करते हैं और इस तरह सदैव जन्म मृत्यु का कष्ट भोगते रहते हैं।
भगवान श्री कृष्ण के ऐसे दिव्य वचन सुनकर अर्जुन पोछते हैं की हे केशव ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ से जीवात्मा को लौटकर आना न पड़े अर्थ उसे जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाए तब श्री कृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि हे अर्जुन ऐसा स्थान अवश्य है और वह है परम धाम अर्थात मेरा धाम जहाँ पहुंचकर कभी भी किसी जीवात्मा को वापस नहीं आना पड़ता अर्थात जो जीवात्मा अपने पुण्यकर्मो द्वारा मुझ में समाहित हो जाता है उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है और इसी को मोक्ष कहा जाता है। इसलिए मेरी यह सलाह है कि मुष्यों को चाहिए की वह अपने सम्पूर्ण जीवन काल में ऐस कर्म करे जिसे उसे मोक्ष मिल जाए अर्थात मुझ में समां जाए।
तो दर्शकों भगवान श्री कृष्ण द्वारा कहे गए इन वचनो को जानने के बाद आपकी क्या राय है निचे हमें कमेंट कर अवश्य बताएं और यदि आपको हमारी ये वीडियो पसंद आई हो तो इस ज्ञान को अपने तक सिमित ना रखें बल्कि होने रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ भी शेयर करे ताकि उन्हें भी भगवान श्री कृष्ण द्वारा कही गयी बातों के बारे में जान सकें। फिलहाल आज की वीडियो में इतना ही अब हमें इजाजत दें और हाँ आगरा आप हमारे चैनल पर नए हैं तो ऐसी ही आध्यात्मिक जानकारी के लिए हमारे चैनल को अभी सब्सक्राइब कर ले. वीडियो अंत तक देखने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।