महाभारत की कहानियां और प्रसंग तो हम समय समय पर लेकर आते ही रहते हैं। परन्तु आज हम महाभारत के युद्ध से जुड़ा एक महत्वपूर्ण तथ्य आप सभी के साथ साझा करने आये हैं। क्या आप जानते हैं की महाभारत का लगभग पूरा युद्ध दिन के समय ही क्यों लड़ा गया ?
महाभारत युद्ध के नियम
महाभारत की लड़ाई में यह नियम था कि युद्ध दिन के उजाले के दौरान ही लड़ा जाएगा।क्योंकि इस युद्ध में उपयोग किए जाने वाले हथियार ज्यादातर सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से ही चलाये जा सकते थे। समाप्ति को छोड़कर महाभारत का पूरा युद्ध युद्ध ,सूर्य की प्रकाश यानी दिन के समय में हुआ था। अंत में अश्वत्थामा ने नियमों का उल्लंघन किया और रात के समय पांडवों के पुत्रों को मार डाला। महाभारत में इस बात का वर्णन है कि गुरु द्रोणाचार्य ने दिन के प्रकाश के दौरान तो कौरव और पांडवों को प्रशिक्षित किया था लेकिन उन्होंने रात में केवल अपने बेटे अश्वत्थामा को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया।
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सौरऊर्जा वाले हथियार
अतिरिक्त ऊर्जा के साथ लड़ने के लिए उन्होंने अश्व्थामा को ऐसे अस्त्र शस्त्र मुहैया करवाए जिसे सौर ऊर्जा के साथ या बिना भी चलाया जा सकता था। और इस प्रकार वह रात के दौरान पांडव पुत्रों को मारने में सक्षम था। पांडव अपने बेटों के जीवन को संरक्षित करने में सक्षम नहीं थे क्योंकि उनके पास ऐसे हथियार नहीं थे जो सूर्य के प्रकाश या सौर ऊर्जा के बिना कार्य कर सकें।
अभिमन्यु की मृत्यु
एक और आश्चर्यजनक उदाहरण तब मिलता है जब द्रोणाचार्य के रचे हुए चक्रव्यूह में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु फंस जाता है। अभिमन्यु अपने पूरे बल से लड़ता है और प्रहार करता है , किंतु तभी जयद्रथ पीछे से अभिमन्यु पर ज़ोरदार प्रहार कर देता है। उस वार की मार अभिमन्यु सह ना सका और वीरगति को प्राप्त हो गया। अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार जब अर्जुन को मिला तो वह बेहद क्रोधित हो उठा। अर्जुन पागलों की तरह युद्ध के मैदान के बीचोबीच पहुंचा और सबके सामने जयद्रथ को चुनौती दी।
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अर्जुन बोला, “कल युद्ध के मैदान में मैं सबके सामने तुम्हारा वध करके अपने पुत्र की मौत का बदला लूंगा। यदि मैं सूर्यास्त से पहले इस प्रतिज्ञा को पूर्ण करने में असफल रहता हूँ तो स्वयं अपने प्राण हर कर आत्मदाह कर लूंगा, यह मेरा वचन है | अगले दिन युद्ध शुरू हुआ। गुस्से से लाल अर्जुन की आंखें युद्ध के मैदान में जयद्रथ को इस प्रकार से ढूंढ़ रही थीं जैसे कोई प्यासा जल की तलाश में हो। किंतु वह मिल नहीं रहा था। समय बीत रहा था और कुछ ही समय के बाद सूर्यास्त भी होने वाला था। अर्जुन अपनी हार निकट देखकर निराश हो रहा था।
श्रीकृष्ण की लीला
तभी श्रीकृष्ण ने उसे बताया कि जयद्रथ को बचाने के लिए कौरवों ने उसे घेर रखा है, ताकि तुम उसे खोज ना सके। अब श्रीकृष्ण को भी संध्या होने की चिंता सताने लगी । वह सूर्य को छिपाना चाहते थे, लेकिन सूर्य को ढकने के लिए किसी विशाल वस्तु की आवश्यकता थी। इसीलिए उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया। इसकी मदद से उन्होंने सूर्य सुदर्शन चक्र के पीछे छिपा दिया ताकि कौरवों को यह लगे कि संध्या हो गई है और अर्जुन की प्रतिज्ञा भी पूरी नहीं हुई। जैसे ही रोशनी कम होने लगी तो कौरव खुश हो गए और अपनी सेना के कवच से बाहर आने लगे। अब जयद्रथ भी सामने आ गया था। जयद्रथ और कौरव अर्जुन की हार को अपनी आंखों से देखना चाहते थे। लेकिन श्रीकृष्ण की लीला तो कुछ और ही थी।
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श्रीकृष्ण बोले, “पार्थ! अभी संध्या नहीं हुई। देखो, सूर्य अभी भी दिखाई दे रहा है। तुम्हारा शत्रु अब तुम्हारे सामने खड़ा है। जाओ, वार करो उस पर।“ अर्जुन खड़ा हुआ और उसने अपना गांडीव उठा लिया। जैसे ही सूर्य क्षितिज में फिर से दिखाई दिया, अर्जुन ने सौर ऊर्जा संचालित हथियार के साथ जयद्र को मार डाला।
जयदरथ वध
जयद्रथ का वध कर इस प्रकार से अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण की। युद्ध के इस अध्याय में श्रीकृष्ण द्वारा रची गई माया भले ही मूल रूप से गलत लगती हो, परंतु जो कौरवों ने किया उसके विपरीत अर्जुन को सच्चाई का मार्ग दिखाना अधर्म नहीं था।