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जब हुआ रामभक्त जामवन्त से भगवान कृष्ण का महाप्रलयंकारी युद्ध

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रामायण और महाभारत कल में में बहुत से ऐसे योद्धा हुए जो त्रेतायुग और द्वापरयुग दोनों ही में मौजूद थे।और उन्होंने रावण से युद्ध के दौरान भी अहम् भूमिका निभाई तथा धर्म और अधर्म के लिए लड़ा गया युद्ध महाभारत में भी अपने युद्ध कौशल का परिचय देते हुए धर्मस्थापना में मदद की। इस लेख में हम आपको एक ऐसे ही योद्धा के बारे में बताएँगे जिन्होंने भगवान विष्णु के रामावतार के समय रावण पर विजय पाने में पूरी ताकत लगा दी और कृष्णावतार में उस योद्धा ने अपने आराध्य देव से ही युद्ध किया।

अपने आराध्य से युद्ध करनेवाला वह योद्धा और कोई नहीं रामायणकाल के ऋक्षराज जामवंत थे। महाबली जामवंत की गिनती उन गिने चुने पौराणिक पात्रों में होता है जो त्रेता युग के रामायण काल में भी उपस्थित थे और द्वापर युग के महाभारत काल में भी। रामायण काल में जहाँ वो विष्णु अवतार श्री राम के प्रमुख सहायक बने थे वही महाभारत काल में उन्होंने विष्णु अवतार श्री कृष्ण से युद्ध लड़ा था।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार सत्राजित की उपासना से  प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने  अपनी स्यमन्तक नाम की मणि उसे दे दी। श्री कृष्ण से जब सत्राजित  की भेंट होती है तो कृष्ण उन्हें मणि को राजा को भेंट करने की सलाह देते हैं।  उसके बाद यह बात सुन सत्राजित बिना कुछ बोले ही वहाँ से उठ कर चला गया। ।एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेनजित उस मणि को धारण  कर घोड़े पर सवार हो शिकार पर निकल  गया। वन में प्रसेनजित पर एक सिंह ने हमला कर दिया जिसमें वह मारा गया। सिंह अपने साथ मणि भी ले कर चला गया।

उसी समय जंगल से ऋक्षराज जामवंत उस जंगल से होकर गुजर रहे थे। उस सिंह को ऋक्षराज जामवंत ने मारकर वह मणि प्राप्त कर ली और अपनी गुफा में चले गए। जामवंत ने उस मणि को अपने पुत्र  को दे दिया जो उसे खिलौना समझ कर उससे खेलने लगा। इधर जब प्रसेनजित लौट कर नहीं आया तो सत्राजित ने समझा कि उसके भाई को कृष्ण ने मारकर मणि छीन ली है। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि वह मणि एक रीछ के बालक के पास है जो उसे हाथ में लिए खेल रहा है। श्री कृष्ण ने उस मणि को बालक से ले लिया की तभी वहां जामवंत आ गए।

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श्री कृष्ण के हाथ में मणि देखकर जामवंत अत्यन्त क्रोधित होकर श्री कृष्ण को मारने के लिये झपटा। जामवंत और श्री कृष्ण में भयंकर युद्ध होने लगा। उधर श्री कृष्ण और जामवंत को  युद्ध करते हुये गुफा में अट्ठाईस दिन बीत गए। युद्ध के दौरान  कृष्ण की मार से महाबली जामवंत की नस टूट गई। वह अति व्याकुल हो उठा और अपने स्वामी श्री रामचन्द्र जी का स्मरण करने लगा। जामवंत के द्वारा श्री राम के स्मरण करते ही भगवान श्री कृष्ण ने श्री रामचन्द्र के रूप में उसे दर्शन दिये।

जामवंत उनके चरणों में गिर गया और बोला, हे प्रभु  अब मैंने जाना कि आपने यदुवंश में अवतार लिया है.” श्री कृष्ण ने कहा, “हे जामवंत तुमने मेरे राम अवतार के समय रावण के वध हो जाने के पश्चात मुझसे युद्ध करने की इच्छा व्यक्त की थी और मैंने तुम्हे वचन दिया था  कि मैं तुम्हारी इच्छा अपने अगले अवतार में अवश्य पूरी करूँगा. अपना वचन सत्य सिद्ध करने के लिये ही मैंने तुमसे यह युद्ध किया है.”

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श्री कृष्ण ने सत्राजित को बुलवाकर उसकी मणि उसे वापस कर दी। सत्राजित अपने द्वारा श्री कृष्ण पर लगाये गये झूठे कलंक के कारण अति लज्जित हुआ और पश्चाताप करने लगा।

प्रायश्चित  के रूप में उसने अपनी कन्या सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर दिया और वह मणि भी श्री कृष्ण को  दहेज में दे दी। किन्तु  श्री कृष्ण ने उस मणि को स्वीकार न करके पुनः सत्राजित को वापस कर दिया।

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