मित्रों इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं की भगवान श्री कृष्ण ने अपने सदृश दिखने वाले पौंड्रक वासुदेव का वध क्यों और किसी किया ?
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार द्वापरयुग में श्री कृष्ण के स्वरुप का एक बहुरुपिया भी हुआ करता था जो लोगों से ये कहता की वो ही असली वासुदेव है जो इस धरा को सारे पापों से मुक्त करने के लिए अवतरित हुआ है।और उस बहुरुपिए का नाम था पौंड्रक वासुदेव। वह करूष देश का राजा था। और सबसे आश्चर्य की बात यह थी की भगवान श्री कृष्ण के तरह ही उसके पिता का नाम भी वासुदेव ही था। पौंड्रक शक्तिशाली तो था परंतु बड़ा ही मूर्ख था। वह भगवान श्री कृष्ण को ग्वाला कहता था। इतना ही नहीं पौंड्रक भी भगवान श्री कृष्ण की तरह ही नकली सुदर्शन चक्र, शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि और पीले वस्त्र धारण करता था।
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विष्णु पुराण के पंचम अंश के चौतीसवें अध्याय में वर्णित कथा के अनुसार एक बार पौंड्रक नें अपने एक दूत को भगवान कृष्ण के पास एक सन्देश देने के लिए द्वारका भेजा। द्वारका पहुँचने पर उस दूत को बड़े ही आदर सत्कार के साथ अतिथिगृह में ठहराया गया। फिर अगली सुबह द्वारका की राजसभा में दूत को सन्देश देने के लिए उपस्थित किया गया। उसके बाद श्री कृष्ण ने सबसे पहले उस दूत से कहा की हे दूत पहले ये बताओ की तुम किसका सन्देश लेकर आये हो। तब उस दूत ने कहा हे श्री कृष्ण मैं करूष देश के राजा पौंड्रक का दूत हूँ और उन्होंने मुझे आपके लिए एक ख़ास सन्देश के साथ यहाँ भेजा है। क्या वो सन्देश मैं आपको सुना सकता हूँ। फिर श्री कृष्ण की आज्ञा पाते ही पौंड्रक के दूत ने सन्देश कहना शुरू किया। उसने कहा हे श्री कृष्ण अब मैं जो सन्देश आपको सुनाने जा रहा हूँ उसका एक शब्द भी मेरा नहीं है। सन्देश के सारे शब्द महाराज पौंड्रक के हैं। जिसके अनुसार उन्होंने आपको ये कहलवाया है की एकमात्र मैं ही वासुदेव हूँ। दूसरा कोई नहीं है। प्राणियों पर कृपा करने के लिए मैंने ही अवतार ग्रहण किया है। तुमतो एक ग्वाला हो जो बचपन में लोगों के घरों से माखन चुराया करते थे। तुमने झूठ-मूठ अपना नाम वासुदेव रख लिया है,अब उसे छोड़ दो। यदुवंशी तुमने मूर्खता वश मेरे चिन्ह धारण कर रखे हैं। उन्हें छोड़कर मेरी शरण में आओ और मेरा सुदर्शन चक्र जो तुमने चुरा रखा है उसे मुझे लौटा दो और यदि मेरी बात तुम्हे स्वीकार न हो तो मुझसे युद्ध करो।
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पौंड्रक के दूत की यह बात सुनकर उग्रसेन आदि सभासद जोर-जोर से हंसने लगे। उनकी हंसी समाप्त होने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने दूत से कहा की हे दूत तुम जाकर अपने राजा से मेरी ओर से ये कह देना की रे मूर्ख चक्र आदि चिन्ह यो ही नहीं छोडूंगा और ना ही मैं तुमसे युद्ध करने से डरता हूँ। भगवान श्री कृष्ण का यह तिरस्कार पूर्ण संवाद लेकर पौंड्रक का दूत अपने स्वामी के पास आया और उसे कह सुनाया।
इधर भगवान श्री कृष्ण गरुड़ पर सवार होकर काशी की ओर चल पड़े क्यूंकि वह करूष का राजा पौंड्रक उन दिनों वहीँ अपने मित्र काशी राज के पास रहता था। कशी की सीमा पर पहुंचकर द्वारका की सेना ने आक्रमण कर दिया।
उधर भगवान श्री कृष्ण के आक्रमण का समाचार पाकर महारथी पौंड्रक भी दो अक्षौहिणी सेना के साथ शीघ्र ही नगर से बाहर निकल आया। काशी का राजा पौंड्रक का मित्र था। इसलिए वह भी उसकी सहायता करने के लिए तीन अक्षौहिणी सेना के साथ उसके पीछे-पीछे आ गया। अब भगवान श्री कृष्ण ने पौंड्रक को देखा। पौंड्रक ने भी उन्ही की तरह शंख,चक्र,तलवार,गदा,शारंग धनुष और श्रीवत्सं चिन्ह आदि धारण कर रखे थे। उसके भी वक्षस्थल पर बनावटी कौस्तुभमणि और वनमाला लटक रही थी। अर्थात उसने एक अभिनेता की भाँती श्री कृष्ण का बनावटी वेश धारण कर रखा था।
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फिर कुछ देर बाद पौंड्रक ने द्वारका की सेना को सम्बोधित करते हुए कहा की सैनिकों जिसे तुम सभी भगवान समझते हो वह वास्तव में एक छलिया है। उसने तुम सभी को छला है। मेरी और से युद्ध करो क्यूंकि मैं ही असली वासुदेव हूँ। अगर तुमलोगों को मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा है तुमलोग ही ये बताओ की क्या ये सच नहीं है की बचपन में ये ग्वाला वृन्दावन में लोगों के घर चोरियां करता था,उनका माखन चुरा कर खा लिया करता था जब उससे भी मन नहीं भरा तो यह वहां की बहु बेटियों की वस्त्र चुराने लगा ताकि उनकी इज्जत से यह खेल सके। यह सुन कर श्री कृष्ण क्रोधित हो उठे और उन्होंने पौंड्रक से कहा की रे मूर्ख चुप हो जा नहीं तो मैं तुम्हारा अंत कर दूंगा। यह सुन पौंड्रक जोर जोर से हसने लगा और फिर श्री कृष्ण से कहना शुरू किया की रे ग्वाला तू क्या मुझे मारेगा,तुझ में इतनी शक्ति ही कहाँ है की तू मेरा वध कर सके। तुम तो मेरे सुदर्शन चक्र को चुराकर खुद को बलबान समझता है। यदि तुझ में हिम्मत है तो मेरा सुदर्शन चक्र मुझे वापस कर दे।
इसी तरह पौंड्रक ने श्री कृष्ण को कई प्रकार से अपमानित किया और फिर भगवान श्री कृष्ण और शत्रु सेना के बिच भयंकर युद्ध शुरू हो गया। ये युद्ध काफी देर तक चला। युद्ध के दौरान काशिराज भी बलराम के हाथो मारे गए और जब अंत में पौंड्रक अकेला बच गया तब भगवान श्री कृष्ण पौंड्रक से बोले-पौंड्रक तुम मुझसे अपना सुदर्शन चक्र मांग रहे थे ना लो मैं तुम्हे तुम्हारा चक्र वापस कर रहा हूँ। इतना कहकर भगवान् श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र पौंड्रक की और छोड़ दिया। यह देख पौंड्रक मुस्कुराने लगा और उसने अपनी अंगुली उठा ली ताकि भगवान श्री कृष्ण की भाँती ही वह भी सुदर्शन चक्र को अपनी अंगुली में धारण कर सके। परन्तु जैसे ही पौंड्रक ने सुदर्शन चक्र को अपनी उंगुली में धारण किया उसका भार बढ़ने लगा और फिर अंत में वह उसी सुदर्शन चक्र में समां गया उसके बाद सुदर्शन चक्र वापस आकर भगवान कृष्ण के अंगुली में समां गया।